उत्तर प्रदेशप्रयागराज

जोश एवं ऊर्जा प्रदान करता है बुंदेली साहित्य- प्रोफेसर मुन्ना तिवारी

मुक्त विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन

प्रयागराज २१ मार्च

बीके यादव/ बालजी दैनिक

उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय में शुक्रवार को साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी के विकास में भोजपुरी, अवधी, ब्रज एवं बुंदेलखंडी भाषा के योगदान पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के समापन सत्र में मुख्य अतिथि बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मुन्ना तिवारी ने कहा कि हिंदी की स्वायत्तता, स्वतंत्रता एवं अस्मिता बचाने में बुंदेलखंडी भाषा का महत्वपूर्ण योगदान है। बुंदेली साहित्य जोश और ऊर्जा प्रदान करता है। इसी वजह से यह क्षेत्र कभी गुलाम नहीं रहा। इसमें युद्ध एवं विचारोत्तेजक कविताओं का वर्णन मिलता है। हिंदी की स्वायत्तता एवं स्वतंत्रता के लिए इन उपभाषाओं ने काफी संघर्ष किया है। प्रोफेसर तिवारी ने कहा कि बुंदेली एवं अन्य उपभाषाओं के गुमनाम रचनाकारों को प्रकाश में लाने की आवश्यकता है। इसके लिए हिंदी के वर्तमान विद्वानों को रामचंद्र शुक्ल बनना पड़ेगा।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर सत्यकाम ने कहा कि हिंदी मुख्यतः बोलियों का समुच्चय है। हर भाषा की अपनी पहचान एवं अस्मिता होती है। उनका संरक्षण किया जाना चाहिए। अवधी, भोजपुरी के साथ ही मैथिली, अंगिका, मगही आदि भाषाओं को पढ़ने से हम अपनी संस्कृति एवं सभ्यता को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। कई ऐसे शब्द व संबोधन हैं जो हिंदी को समृद्ध बनाते हैं। हिंदी ने जो भी ग्रहण किया, वह बोलियों से ग्रहण किया। उन्होंने शोधार्थियों को मौलिक कार्य के लिए प्रोत्साहित किया। राष्ट्र के निर्माण में भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका है।
साहित्य अकादमी के प्रतिनिधि अजय शर्मा ने कहा कि हिंदी को समाज एवं साहित्य में उत्कृष्ट स्थान दिलाने के लिए क्षेत्रीय गोलियों को भाषाओं का महत्वपूर्ण योगदान है साहित्य अकादमी हिंदी एवं क्षेत्रीय भाषाओं के विकास के लिए सतत प्रयत्नशील है। उन्होंने कहा कि दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों में हुए व्याख्यानों को पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया जाएगा। इस अवसर पर उन्होंने साहित्य अकादमी की अवधी एवं भोजपुरी पर प्रकाशित कृति कुलपति प्रोफेसर सत्यकाम को भेंट की।
प्रोफेसर रामपाल गंगवार ने कहा कि सभी भाषाओं को साथ लेकर चलने की क्षमता ब्रजभाषा में समाहित है। ब्रज भाषा में कोमलता के साथ-साथ श्रृंगार और वात्सल्य से प्रेरित कविताओं की लंबी श्रृंखला है। जिसने हिंदी के विकास में चार चांद लगाए।
समापन सत्र में अतिथियों का स्वागत डॉ आनंदानंद त्रिपाठी ने तथा दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार की रिपोर्ट अनुपम ने प्रस्तुत की। संचालन डॉ त्रिविक्रम तिवारी एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर सत्यपाल तिवारी ने किया।
इससे पूर्व हिंदी के विकास में ब्रजभाषा का योगदान एवं बुंदेलखंडी का योगदान विषयक दो तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। जिसमें प्रमुख रूप से प्रोफेसर रामपाल गंगवार, प्रोफेसर हरिदत्त शर्मा, प्रोफेसर राजनाथ सिंह, प्रोफेसर मुन्ना तिवारी तथा डॉ बहादुर सिंह परमार ने विशिष्ट व्याख्यान दिया।

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