आत्माराम यादव पीव
वरिष्ठ पत्रकार
धन को हम लक्ष्मी भी कहते है ओर लक्ष्मी धन की देवी है। लक्ष्मी यानि भगवान विष्णु की पत्नी के प्रति सारी दुनिया की दीवानगी, सभी लक्ष्मी से प्रेम करते है ओर कोई भी अपने पास से उसे जाने नहीं देना चाहता है। क्षीरसागर में शेषशैया पर विराजमान भगवान विष्णु की पत्नी के प्रति दीवानगी से न तो विष्णु जी विचलित होते है ओर न ही लक्ष्मी के स्वभाव मैं अंतर पड़ता है। सोचिए अगर कोई कहे आपकी पत्नी के इतने दीवाने है ओर वे उसपर मरमिटने के लिए तैयार है तो आपका खून खौल उठेगा ओर वह प्रतिशोध लेने निकल पड़ेगा, पत्नी के एक दीवाने से आप पागल हो जाये, आपकी नींद हराम हो जाए तो शेष बाते ही आपके दिमाग की आतिशवाजियों की चकाचौंध से आपके क्या हाल करेगा इसकी कल्पना से आप काँप उठेंगे, किन्तु जगत में भगवान विष्णु अकेले है जिनकी पत्नी को हर व्यकित पागलपन की हद तक चाहता है लेकिन उनपर असर नही होता। दिवाली पर लोग लक्ष्मी कि पूजा करते है एक रात लक्ष्मी अपने भक्तो की प्रार्थना सुनने धरती के नर्मदापुरम पहुँचती है ओर वहाँ के भक्तों की पूजा अर्चना अपनी आंखो से देखकर अपने मन में अपने भक्तों के भावों को सुन गहरा अवसाद ओर चेहरे पर विषाद ओर पीड़ा लिए लौटती है।
विचार कीजिये विश्व की आबादी आठ अरब है यानि आठ अरब पुरुष ओर नारी है। विधाता ने हर पुरुष ओर नारी का साँचा अलग-अलब बनाया है, कोई भी एक दूसरे की कापी नही की गई है, इसलिए यह बात प्रमाणित है की जितने लोग उनती उनकी बैरायटी इस दुनिया में है, यानि आदमियों की बैरायटी आठ अरब है। भले ही देश दुनिया में आठ अरब बैरायटी के लोग हों पर अपने जीवन में इन लोगों को सुबह से शाम तक ओर शाम से सुबह तक 24 घंटे आल टाइम मनी अर्थात लक्ष्मी से जुड़ाव बना हुआ है जो अपने-अपने देश की प्रचलित मुद्रा रुपया पैसा, डालर, दीनार आदि के सहारे अपनी आम जरूरत से खास जरूरत को पूरा करते है। आदमी का धर्म कोई भी हो पर वह ऐनकेन प्रकारेण रुपया पैसा कमाने के लिए सही गलत रास्ते से अमीर बनने का अवसर खोना नही चाहता है। सीधे से कहा जाये तो रुपया पैसा की दीवानगी सबके माथे पर नृत्य कर रही है ओर हरेक व्यक्ति धनवान बनने की दौड़ में शामिल है। लक्ष्मी को हर व्यक्ति पाना चाहता है, हर देश पाना चाहता है ताकि दूसरे की तुलना में बेशुमार लक्ष्मी होने पर वह अपनी शाख दुनिया के सामने बना सके।
अगर विष्णु जी ओर लक्ष्मी जी के मध्य लक्ष्मी के प्रति पूरी दुनिया के हरेक व्यक्ति के प्रेम के चर्चे हो तो किंचित ही विष्णु जी विनोद का अवसर खोना चाहेंगे ओर अपनी पत्नी की ओर नजर उठाकर देखने भर से लक्ष्मी जी को लजाते हुये मुस्कुरा कर जवाब समाप्त करना होगा। आज भारत देश ही नहीं अपितु दुनिया के कई देश लक्ष्मी की महिमा गा रहे है ओर चंहु ओर लक्ष्मी जी का ही तो बोलबाला है? लक्ष्मी जी की भक्ति ओर उनकी शरण पाने के लिए लोगों में जो दौड़ लगी है वह वहाँ के मंदिरों में उमड़रहे जनसमुदाय की भीड़ से समझा जा सकता है। लोग लक्ष्मी की महिमा से परिचित हो गए है ओर जागते सोते बस लक्ष्मी का ही स्मररण चल रहा है। भले कभी कभार कुछ कलयुगी कथाकार लक्ष्मी को पाने के लिए दूसरे देवों की पूजा पाठ करा ले लेकिन जिन देवताओं की पूजा हुई है वे भी लक्ष्मी की शरण में पहुचकर उन्हे पूजने वाले भक्तों पर कृपा करने के लिए अड़ जाते है। लक्ष्मी ठहरी धन की देवी और धन की आवश्यकता किसे नही होती यही कारण है कि लोग लक्ष्मी को सिर आंखों पर बिठाते है ओर लक्ष्मी आने वाहन उल्लू पर सवार हो उनपर कृपा कर जाती है। मनुष्य ही नहीं देवतागण भी अपनी पत्नी के प्रति दूसरों के नम्र रवैये ओर प्रेम को देखकर जलभून जाते है,अगर कभी जगत का नियंता विष्णु भी लक्ष्मी के पैरों मे नतमस्तक भक्तों को देखे तो यह विचार उनके मन में आ ही जाता है की उन्हे लक्ष्मी भक्त अपने पैरों से रौंद रहे है, भले भक्तों में उपेक्षा का भाव न हो पर जरा सा शक भी ठीक नहीं होता। इधर लक्ष्मी जी क्षीरसागर में भगवान विष्णु के चरण दबाते हुए अपने भक्तों से मिलने का मन बनाकर अपने उल्लू की पीठ पर सवार हो भारत भूमि के नर्मदापुरम नगर पहुंचती है।
सेठानी घाट के मनोरम दृश पर लक्ष्मी जी की नजर जाती है ओर उनका उल्लू सीधा नर्मदापुरम के आकाश से लक्ष्मी को अपनी पीठ पर लादे निकलने को होता है किन्तु लक्ष्मी जी का इशारा पाकर वही उतर जा है। लक्ष्मीजी ने चारो ओर दृष्टि डालकर देखा तो एक से बढक़र एक भवन और आकाश छूती इमारते खड़ी थी नर्मदा नदी की छाती को चीरने के लिए जगह जगह सेकड़ों की संख्या में जेसीबी पोकमशीन मशीने रेत के अंबार लगा रही है ओर हजारों डंफर रेत भरने, ढ़ोने, खाली करते दिखे। लक्ष्मीजी को विचार आया क्यों न लोगों के पूजाघर में प्रवेश करके देखा जाएं कि उनकी पूजा कैसे हो रही है अत: यह सोचकर वे नगर सेठ के रईसनिवास में अदृश्य रूप में पृविष्ट हुई वहां उन्होनें देखा कि वह रईस परिवार उनकी स्वर्ण मूर्ति पर धूप, दीप,नैवेद्य,आदि के साथ-साथ पुष्प पत्रादि चढ़ाए गए थे मूर्ति के समीप ही हीरे जवाहरात आभूशण चांदी के कलदार रूपये और नोटो की गडिडयों तथा जेसीबी, डंफर सहित सभी उपलब्ध वाहन के कागजात, सहित दूसरों के नाम पर चल रही जमीन के कागजातों का अंबार लगा था जिसकी पूजा हो रही थी। लक्ष्मीजी यह देखकर चकित हो गई भला इनकी पूजा किसलिए उनकी पूजा के लिए तो लता पत्रादि ही पर्याप्त है मुख्य बात तो मन की श्रद्धा की है लेकिन कही दृष्टिïगत नही हो रही थी लक्ष्मी जी विचार मंथन करते हुए आगे बढऩे ही वाली थी कि उनके कानों मे प्रार्थना के शब्द टकराये देवी मां तुमने इस अकिंचन पर बहुत कृपा की है इस रंक को राजा बना दिया है जब इतनी कृपा की है तो मां एक कृपा ओर कर दो इस बार चुनाव में हमारे सारे प्रतिद्वंदी को टिकट न मिले ओर हमारे लाल को टिकट मिले ओर वह प्रचंड मतों से जीते, बस हमें ओर कुछ नहीं चाहिए।
लक्ष्मी माँ वहाँ से तुरंत लाज की ओर निकली जहां चल रही प्रार्थना से वे चकित हो गई। यहा पूजास्थल पर लगा धन का अंबार ओर संपती के कागजात रईस निवास की तुलना में पाँच दस ग्राम कम हो सकते है किन्तु आठ दस पीढ़ी आराम से बैठकर खा सकती है , इतना पर्याप्त था किन्तु वे भाइयों के साथ प्रार्थना कर रहे थे कि रईसजादों से राजनीति में कभी हार न हो ओर जिसे के सारे थानों में उनके ही कोतवाल हो ताकि थानों पर उनका शासन बना रहे ओर जितने भी उल्टे सीधे धंधे ओर कारोबार है उनकी ओर कोई भी पुलिसवाला नजर न डाले, भले थानेदारों ओर पुलिस व जिला प्रशासन के अधिकारी कि जो डिमांड हो वह पूरी करने कर जनता से वसूलते रहेंगे। वे प्रार्थना कर रहे थे कि हम कहा जमीन पर थे, आए दिन पुलिसथानों मे हाजिरी देते थे आज आपकी ही कृपा से हम इस मुकाम पर है, इसलिए हे लक्ष्मी माँ हमारे सारे कारोबार दिन दौगुने ओर रात चौगुने हो, यही प्रार्थना है। लक्ष्मी माँ अपने इस भक्त के मन में भरी तृष्णा को देख अवाक रह गई ओर अगले घर पूजा स्थान पर पहुंची।
ये घर एक पुलिस के बड़े अधिकारी का था जो लक्ष्मी जी कि प्रार्थना कर कह रहे थे कि हे धन की देवी लक्ष्मी तुमने मुझे पद प्रतिष्ठा , धन धान्य यश सब कुछ दिया मेरी हर मनोकामना भी पूरी की लेकिन मेरी एक कामना और पूरी कर दीजिये इस नेता ने मेरा जीना दूभर कर रखा है ओर डीआईजी के कान भरकर पापी न जीने दे रहा है ओर न ही मरने दे रहा है, अगर डीआईजी संस्पेंड हो जाये तो हे लक्ष्मी मैया आपके मंदिर में चाँदी का छत्र चढ़ाने नंगे पाँव आऊँगा। लक्ष्मी जी तुरंत एक सटोरिये के पूजा घर पहुंची तो वह प्रार्थना कर रहा था कि इस दारोगा ने नाक में दम कर रखा है, साले ने पहले शहर में मेरे सारे लड़कों को बंद कर सट्टा कि खाइवाजी बंद कराई फिर अपने दुगुने भाव कर चालू करा दिया ओर शराबबंदी में घर घर शराब का काम तो दे दिया लेकिन वसूली तगड़ी कर दी जिससे में ओर लड़कों का जीना हराम हो गया है, अगर ये दारोगा चलता बने तो कम से कम सभी को सुख चैन मिलेगा, हे देवी महालक्ष्मी आप कि दया सदैव मुझ पर बनी रही है ओर ये दारोगा कुछ ज्यादा ही उड़ रहा है कम से कम मुझ पर इतना एहसान ओर कर दे कि मैं इसकी पेंट उतरवा सकूँ इसमें सफलता दे दे माँ,,, लक्ष्मीजी का चेहरा पीला पड़ गया यह सुनकर वे सोचने लगी क्या आजकल यही सब पूजा में हो रहा है वे दो कदम बढ़ा कर अब शहर के छुपेरुस्तम बहुरूपिया दलाल छूटभैये समाजसेवी एनजीओ चलाने वाले के आवासगृह की ओर रवाना हुई।
वहाँ देखा तो वह भी प्रार्थना कर कह रहा था हे महालक्ष्मी मां तुमने सदेव मेंरी सहायकता की है मुझे इस स्थिति तक पहुचाया कि मैं आज जो कुछ हूँ बस आपकी कृपा से हूँ । मेरी एक अभिलाषा और पूरी कर दो मां तुम तो जानती ही हो कि मैं नेकनीयत चरित्रवान दोगले मंत्री ओर नेताओं के लिए लड़कियां सप्लाय करता रहा हूँ, अब उस पाजी दोगले मंत्री की नजर मेरी बेटी ओर पुत्रवधू पर पड़ गई है उसने मुझे धमकी दे रखी है कि यदि मैने उसकी बात नही मानी तो वह मेरे एनजीओ को दी गई करोड़ों रुपए कि फर्जीवाड़े कि कलई खोल मुझे जेल भिजवा देगा मां कुछ ऐसा उपाय कों कि वह कमीना मेंरी बेटी ओर पुत्रबधू पर कुदष्टि न डाल सके। लक्ष्मीजी ने मन ही मन समाजसेवी को कोसा ओरों की बहन बेटियों को तो सप्लाय करता रहा तब नही सोचा अब जब स्वयं की पुत्रबधू की बात आई तो मेरी प्रार्थना कर रहा है तू कितना नीच ओर पापी है, यह बड़बड़ाती हुई लक्ष्मी जी दोगले मंत्री कि पूजा देखने निकल पड़ी।
दोगला मंत्री लक्ष्मी जी कि प्रार्थना आंखे बंद किए पूरे घर में नोटों कि गड्डी, संपत्ति के दस्तावेजों से भरे दर्जनों थैलों, थालों में क्विंटल से ज्यादा सोने ओर चाँदी के आभूषण ओर सिक्के को पूजा घर में रखे अपने बदसूरत होंठों से बुदबुदा रहा था कि माँ में कितना नीच और पापी है फिर भी देरी करुणा ओर दया मुझ पर बरसती रही है। हे लक्ष्मी मैया तुमने मेरा हर काम साधा है मेरी बिगड़ी बात बनाई है चुनाव जितवा कर मंत्री तक बनवाया है, माँ इस बार मेरी एक मनोकामना पूरी कर दो ताकि मेरा जीवन सफल हो जाये। हे लक्ष्मी माँ कृपया कर आज रात को ही चीफ मिनिस्टर को अपने पति विष्णु जी के बैकुंठ को भिजवा दो ताकि आपकी कृपया से अब तक जो धन कमाया है वह विधायकों कि खरीद फरोख्त के काम आ सके ओर मैं चीफ मिनिस्टर बन जाऊ। लक्ष्मी जी का मन हुआ अभी सब इसके पास से छीन लू ओर इस सारे पापियों को उनकी करनी का फल दूँ, किन्तु तुरंत खयाल आया कि वे अपने भक्तों कि प्रशंसा सुनकर उनकी भक्ति देखने आई थी न कि किसी को दंड देने के लिए आई थी। लक्ष्मी जी अपने भक्तो में धनरूपी लक्ष्मी को पाने वालों में स्वार्थ और प्रतिशेाध की गंगा प्रवाहित होते देखकर बहुत दुखी हुई ओर वे अपने आपको नर्मदापुरम के भक्तो को देख शेष भारत के भक्तों को देखने का भ्रम तोड़ सीधे विष्णुजी के पास क्षीर सागर पहुंची। विष्णुजी ने देखा कि उनकी पत्नी लक्ष्मी जी को दिवानों के तरह चाहने वाले भक्तो से लक्ष्मी के मुखमंडल पर एक गहरा विषाद ओर पीड़ा के भाव थे।