बरेली

विषयी व्यक्ति का भगवान में मन नहीं लग सकता है – मुझे प्रेमभूषण जी महाराज

मंदिर और सत्संग में जाकर के भी विषयी व्यक्ति का मन नहीं लगता है। जिसके विषयों में रस लेने की आदत पड़ गई है उसे सत्संग नहीं सुहाता है। ऐसा व्यक्ति किसी भगत के साथ भी ज्यादा देर तक नहीं बैठ पाता है। अगर बहुत ढंग से प्रयास नहीं करे तो ऐसा व्यक्ति जीवन भर भटकने को विवश होता है।
उक्त बातें बरेली के मॉडल टाउन स्थित श्रीहरि मंदिर के कथा मंडप में गंगा समग्र के आवाहन और श्री अरुण गुप्ता जी के पावन संकल्प से आयोजित पंच दिवसीय श्रीराम कथा का गायन करते हुए प्रथम दिन पूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कहीं।

सरस् श्रीराम कथा गायन के लिए लोक ख्याति प्राप्त प्रेममूर्ति पूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने कथा गायन के क्रम में कहा कि मनुष्य को जीव की चर्चा में नहीं बल्कि जगदीश की चर्चा में रहना चाहिए। वह जीव धन्य है जो भगवान में लग जाता है। मानस जी को निरंतर पढ़ने वाले लोगों के लिए भी अपने चित्त की गति पर नियंत्रण रखना आवश्यक होता है। मनुष्य के चित्त की गति जैसी होती है उसे मानस जी से प्राप्ति भी उसी प्रकार से होती है। मनुष्य का जब कर्म बिगड़ता है तो उसे भोग योनि प्राप्त होती है। भोग योनि में जीव को कर्म का बंधन नहीं लगता है। कुत्ते, बिल्ली, गधे आदि जीव अपने जीवन भर केवल भोग करते हैं। वह भी योनि में सारे भोग भोग लेने के बाद पुनः उसे जीव को मनुष्य का शरीर प्राप्त होता है ताकि वह अपने कर्मों के माध्यम से एक बार पुनः भगवान से जुड़ सके। इसके बाद भी अगर मनुष्य का शरीर पाकर भी कोई भोग योनि में ही रहना चाहता है तो क्या कहा जा सकता है?


पूज्य श्री ने कहा कि हर मनुष्य सुबह से शाम तक कुछ ना कुछ काम करता ही रहता है। लेकिन उसका किया हुआ हर कार्य, चाहे वह किसी के लिए भी कर रहा हो, कर्ज़ की अदायगी के अलावा और कुछ भी नहीं है। इस तरह के कार्य का कोई भी फल उस मनुष्य के अपने हित में नहीं होता है। अपने लिए तो उसे हर रोज थोड़ा-थोड़ा सत्कर्म ही करना आवश्यक होता है।
महाराज जी ने श्रीराम जन्मोत्सव और बाललीला प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि मनुष्य का शरीर धारण करने का एकमात्र उद्देश्य सत्कर्म करना ही है। इस धरा से वापस जाने पर केवल सतकर्म ही है अपने साथ जाता है।
महाराज जी ने कहा कि सनातन धर्म विश्वास पर ही टिका है। धरती और संसार भगवान की रचना है तथा इसकी हर रचना पर भगवान की दृष्टि है। भगवान को वही जान पाता है जिसे भगवान जनाना चाहते हैं। और भगवान को जान जाने वाला भगवान का होकर ही रह जाता है। भगवान को न मानने वाले या प्रकृति से छेड़छाड़ करने वाले लोगों को अगर यह लगता है कि उसका फल उन्हें नहीं भोगना होगा तो वह गलत सोचते हैं। अच्छे कर्म का अच्छा फल और बुरे कर्म का पूरा फल हर हाल में प्राप्त होता है। केवट जी को 17 जन्मों के बाद भगवान का पैर पखारने का अवसर मिला था।
रामकथा सुनने मात्र से सारे सुख प्रदान कर देती है,लेकिन कथा सत्संग का फल सत्कर्मों से मिलता है। बिना सत्संग के मनुष्य में विवेक जाग्रत नहीं होता है। जब विवेक जाग्रत हो जाता है तो साधक यजन में और भगत भजन में लीन हो जाता है। जितना विश्वास बढता जाता है, श्रद्धा भी उतनी ही बढ़ती जाती है। भगवत भक्ति भी श्रद्धा और विश्वास के परिणय से होती है। जीवन में जिसके प्रति हम श्रद्धा रखते हैं, उसका ही हम आदर करते हैं।
महाराज श्री ने कहा कि हमारे सनातन सदग्रंथों ने बताया है कि है बच्चों को आदेश से नहीं स्वयं के आचरण से समझाएं। भगवान भोलेनाथ के इष्ट बालक राम थे, बालकों मे बड़ी निर्मलता होती है। बच्चों की बाललीला ब्रह्मभाव की होती है। बालकों को यदि हम कोई संदेश देना चाहें तो वे नहीं मानते हैं,लेकिन जैसा हम करते हैं बच्चे भी वैसा ही करते हैं। यदि हम क्रोध करेंगे तो वे क्रोध करेंगे और कीर्तन करेंगे वो भी कीर्तन करेंगे, इसलिए बच्चों को हम अपने आचरण से समझाएं।
महाराजश्री ने कहा कि मनुष्य भी जब अपनी सहजावस्था में होता है तो समाधि में पहुंच जाता है। बिना शांत रहे भजन नहीं होता है। मन में यदि शांति नहीं हैं तो न चिंतन होता है और न कथा में मन लगता है। जब मन मस्तिष्क में बहुत सारे घटनाक्रम एक साथ चलते हैं तो मन शांत नहीं रहता है। फिर ऐसे में हम बच्चों को शांत रहने के लिए तो कह सकते हैं लेकिन खुद शांत नहीं रह सकते, क्योंकि शांति के लिए मन को एकाग्र करना बहुत जरूरी है। हमारे चित्त में जितनी निर्मलता रहेगी, मन भी उतना निर्मल हो जाता है। मन शुद्ध अन्न से बनता है। इसलिए कहते हैं जैसा खाओगे अन्न, वैसा बनेगा मन,जैसा पीओगे पानी, वैसी बनेगी वाणी। पूज्यश्री ने कहा कि मनुष्य को दोहरा जीवन जीने से बचना चाहिए।
व्यासपीठ का सपत्नीक पूजन यजमान श्री अरुण गुप्ता जी ने किया और श्री अवधेश पांडे , अपर निदेशक, अभियोजन, मुरादाबाद मंडल, श्री हरि मंदिर प्रबंधन कमेटी के श्री सतीश खट्टर जी अध्यक्ष, श्री रवि छाबड़ा जी सचिव , श्री अश्विन ओबेरॉय की डायरेक्टर, समाजसेवी पवन अरोड़ा जी, एसपी पांडे जी डॉक्टर मनोज कुमार मिश्रा और श्री धनंजय शर्मा जी के साथ भगवान की आरती की।
राजेश कुमार जी राष्ट्रीय आयाम प्रमुख सहायक नदी गंगा समग्र के आग्रह पर पूज्य श्री ने मुख्य यजमान अरुण गुप्ता जी का उनके जन्मदिन पर व्यासपीठ से अभिनंदन किया और आशीर्वाद दिया।
महाराज श्री ने कई सुमधुर भजनों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। बड़ी संख्या में उपस्थित रामकथा के प्रेमी, भजनों का आनन्द लेते हुए झूमते नजर आए।

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