कवीता

कत्ल हुए सब कायदे

 

-डॉ. सत्यवान सौरभ

मुकरे होंगे लोग कुछ, देकर स्वयं जुबान।
तभी कागजों पर टिके, रिश्ते और मकान।।

जिनपे धन-तन-मन, समय, सदा किया कुर्बान।
लोग वही अब कह रहे, तेरा क्या अहसान।।

कत्ल हुए सब कायदे, इज्जत लहूलुहान।
सौरभ छोटे पकड़ते, बड़ों की गिरेबान।।

रिश्तों का माधुर्य खो, अकड़े जब संवाद।
आंगन की खुशियां मरे, होते रोज विवाद।।

कैसे करें यकीन हम, सब बातें लें मान।
सिखलाए गुर दौड़ के, जब लँगड़े इंसान।।

विश्वासों के पेड़ जब, खो बैठे हैं छांव।
बसे कहां अपनत्व से, हो हरियाला गांव।।

मेरे अक्षर लेखनी, दिल के सब जज्बात।
सौरभ मेरे बाद भी, रोज करेंगे बात।।

जिसको समझा उम्रभर, अपना दायां साथ।
वही काटकर ले गया, मेरा बायां हाथ।।

 

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