विचार

आज के संदर्भ में समुद्र मंथन का औचित्य: एक प्रेरक दृष्टिकोण

लेखिका: सुनीता कुमारी, पूर्णियां, बिहार

समुद्र मंथन की कथा एक पौराणिक गाथा है, जिसे अक्सर काल्पनिक मानकर अनदेखा कर दिया जाता है। परंतु इस कथा के मूल उद्देश्यों और संदेशों पर विचार करें, तो यह आज के संदर्भ में भी प्रासंगिक और तर्कसंगत प्रतीत होती है। जिस प्रकार उस समय अच्छाई और बुराई के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए समुद्र मंथन आवश्यक था, ठीक उसी प्रकार वर्तमान समय में भी ऐसे प्रयासों की आवश्यकता महसूस होती है।

समुद्र मंथन का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:

समुद्र मंथन का वर्णन विशेष रूप से ‘विष्णु पुराण’ और ‘भागवत पुराण’ में मिलता है। यह घटना देवताओं और असुरों के बीच लंबे समय से चल रहे संघर्ष का परिणाम थी। देवताओं ने जब अपनी शक्ति क्षीण होते देखी, तो उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। विष्णु ने उन्हें सुझाव दिया कि राक्षसों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करें, ताकि अमृत और अन्य बहुमूल्य वस्तुएं प्राप्त की जा सकें।

मंथन के लिए मंदार पर्वत को मंथन की छड़ी और शेष नाग को रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया गया। देवताओं और असुरों ने मिलकर मंथन शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप कई अमूल्य चीजें प्राप्त हुईं।

मंथन से प्राप्त प्रमुख वस्तुएं और घटनाएं

1. हलाहल विष: मंथन से सबसे पहले भयंकर विष निकला, जिसे भगवान शिव ने अपने गले में धारण कर सृष्टि को विनाश से बचाया। इसी कारण उन्हें ‘नीलकंठ’ कहा गया।
2. अमृत: मंथन के अंत में अमृत प्राप्त हुआ। भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर असुरों को छलते हुए अमृत केवल देवताओं को प्रदान किया।
3. अन्य अमूल्य वस्तुएं: हैच्छमणि, कौस्तुभ मणि, और रंभा जैसी चीजें भी मंथन से प्राप्त हुईं।

कथा का आधुनिक संदर्भ

वर्तमान समय में, समाज में अच्छाई और बुराई के बीच संघर्ष की स्थिति पुनः उत्पन्न हो गई है। बुराई इतनी प्रबल हो चुकी है कि अच्छाई का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। ऐसे में, एक नए ‘समुद्र मंथन’ की आवश्यकता है, जिसमें बुरी शक्तियों को नियंत्रित कर समाज में संतुलन स्थापित किया जा सके।

समुद्र मंथन का संदेश

यह कथा हमें धैर्य, संयम और चतुराई के महत्व को सिखाती है। देवताओं ने अपनी कमजोरी के बावजूद धैर्य और चतुराई से अमृत प्राप्त किया और शक्तिशाली बने। आज भी अच्छाई को बुराई पर विजय पाने के लिए इसी प्रकार के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।

समुद्र मंथन की यह कथा केवल धार्मिक या पौराणिक घटना नहीं है, बल्कि यह जीवन में संघर्ष, धैर्य और सफलता का प्रतीक भी है। यदि समाज में अच्छे लोग इसी संदेश को आत्मसात करें, तो बुराई पर विजय प्राप्त कर शांति और सद्भाव का वातावरण बनाया जा सकता है।

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