उत्तर प्रदेशसीतापुर

दैनिक श्रमिकों को पशुपालन निदेशक कार्यालय में धरना करना पड़ा भारी

रिपोर्ट सनोज मिश्रा

एक प्रसिद्ध कहावत है कि ‘कलेजा थामकर रह जाना’, कुछ ऐसी ही घटना सीतापुर जिले के सिधौली तहसील क्षेत्र में पड़ने वाले राजकीय कृषि प्रक्षेत्र में कार्यरत दैनिक श्रमिकों के साथ घटी है. यह राजकीय पशुधन एवं कृषि प्रक्षेत्र पशुपालन विभाग द्वारा संचालित है. यहां काम करने वाले लगभग 80 से 90 दैनिक श्रमिक अपनी मांगों को लेकर राजधानी लखनऊ स्थित पशुपालन निदेशक कार्यालय में धरने पर बैठे थे. अधिकारियों के आश्वसन पर धरना तो 14 नवंबर को खत्म हो गया. लेकिन जब 15 नवंबर को श्रमिक कृषि प्रक्षेत्र पर काम पर लौटे, तो उन्हें प्रक्षेत्र प्रबंधक से पता चला कि उन्हें काम पर नहीं रखा जाएगा, क्योंकि अब काम ही नहीं है.

श्रमिकों ने बताया कि प्रक्षेत्र प्रबंधक सुनील कुमार ने काम पर रखने के लिए शर्त भी रखी है. अभी तक वह जो महीने में 26 ड्यूटी कर रहे थे, अब उन्हें सिर्फ 18 ड्यूटी ही काम पर रखा जाएगा. वह भी इस शर्त के साथ कि जो 2009 से पहले से श्रमिक प्रक्षेत्र में कार्यकर रहे हैं. उन्हें ही दैनिक मजदूरी पर लगाया जाएगा.

यानी जो दैनिक श्रमिक अभी तक प्रतिदिन 237 रुपये पारिश्रमिक पाकर महीने का 6,162 रुपये कमा रहे थे, अब उन्हें महीन में सिर्फ 18 दिन ही काम पर लगाया जाएगा. इस आधार पर उन्हें पारिश्रमिक के रूप में सिर्फ 4,266 ही मिलेंगे. यह तो भैया वही कवाहत चरितार्थ हुई कि ‘अंगारे सिर पर रखना’. यानी जो श्रमिक 18 हजार मासिक वेतन, दुर्घटना बीमा और भविष्य निधि जैसी सुविधाएं देने की मांग को लेकर पशुपालन विभाग निदेशक कार्यालय में धरने पर बैठे थे, अब उन्हें यह सुविधाएं तो मिलना दूर बल्कि पहले से मिल रहा महीने में 26 दिन का काम भी नहीं मिलेगा. उन्हें अब सिर्फ 18 दिन काम पर रखा जाएगा.

श्रमिक तो संवैधानिक तरीके से अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर थे, शायद उन्हें यह आभास नहीं होगा कि वह नई मुसीबत मोल ले रहे हैं. श्रमिक नेताओं का कहना है कि जब वह लोग धरने पर गए थे, तब उन्होंने इस बात की लिखित जानकारी प्रक्षेत्र प्रबंधक सुनील कुमार को दी थी. लेकिन अब जब वह काम पर लौटे तो उन्हें प्रक्षेत्र प्रबंधक द्वारा सशर्त महीने में सिर्फ 18 दिन काम पर रखने की जानकारी दी जा रही है.

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