उत्तर प्रदेशप्रयागराज

दीनदयाल उपाध्याय का संपूर्ण जीवन सामाजिक समरसता से ओत-प्रोत- प्रोफेसर सिंह

मुक्त विश्वविद्यालय चल रहा है दीनदयाल उपाध्याय के रास्तों पर- कुलपति

प्रयागराज 26/09/2024

बीके यादव/ बालजी दैनिक

उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय प्रयागराज में गुरुवार को पंडित दीनदयाल उपाध्याय एवं सामाजिक समरसता पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सह व्याख्यान का आयोजन किया गया।
लोकमान्य तिलक शास्त्रार्थ सभागार में पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि एवं व्याख्यान के मुख्य वक्ता प्रोफेसर हरेश प्रताप सिंह, सदस्य, लोक सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश, प्रयागराज ने कहा कि दीनदयाल उपाध्याय का संपूर्ण जीवन सामाजिक समरसता से ओत-प्रोत था। पंडित दीनदयाल उपाध्याय समाज के सबसे निचले तबके को शिक्षा, स्वास्थ्य, सेवा और स्वावलंबन के माध्यम से उठाने का प्रयास करते रहे। उनके समूचे व्यक्तित्व में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की झलक परिलक्षित होती है। उन्होंने संवेदना को निचले स्तर पर जाकर देखा।
प्रोफेसर सिंह ने कहा कि सामाजिक समरसता के लिए व्यक्तिगत स्वार्थों की तिलांजलि देनी पड़ती है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि कार्य एवं व्यवहार के द्वारा ही समाज में परिवर्तन होता है। वह अंत्योदय पर बहुत बल देते थे। वंचित वर्गों की पढ़ाई और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए उनके मन में नए विचार हमेशा उत्पन्न होते थे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी द्वारा देश हित में किये जा रहे कार्य दीनदयाल उपाध्याय के विचारों पर आधारित हैं। जिन्हें अमल में लाकर देश विश्व में प्रगति के सोपान पर अग्रसर है।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर सत्यकाम ने कहा कि आज मुक्त विश्वविद्यालय पंडित दीनदयाल उपाध्याय के रास्ते पर चलकर शिक्षार्थी के द्वार तक शिक्षा पहुंचने का कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि आज अधिक से अधिक लोगों को दीनदयाल उपाध्याय जी के बारे में पढ़ना चाहिए। जिससे सामाजिक समरसता की व्यापकता का पता चलेगा तथा सामाजिक संबंधों के नए आयाम खुलेंगे। कुलपति प्रोफेसर सत्यकाम ने कहा कि राष्ट्रकवि दिनकर और प्रेमचंद की रचनाओं में भी दीनदयाल के भाव मिलते हैं। इसी तरह वह राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन और दीनदयाल उपाध्याय को उनके विचारों से करीब पाते हैं क्योंकि जो भी जन को समर्पित होगा उसकी कोई भी चीज एक दूसरे में समाहित हो जाएगी। दीनदयाल जी भेदभाव से बहुत दु :खी होते थे । उन्होंने रविंद्र नाथ टैगोर के उपन्यास गोरा का जिक्र करते हुए उसे पढ़ने की सलाह दी।
प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के निदेशक एवं संयोजक प्रोफेसर संजय कुमार सिंह ने किया तथा राष्ट्रीय संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रस्तुत की। राष्ट्रीय संगोष्ठी का समन्वय आयोजन सचिव डॉ दिनेश सिंह, उपनिदेशक पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ ने, संचालन डॉ बाल गोविंद सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन कुल सचिव कर्नल विनय कुमार ने किया। राष्ट्रीय संगोष्ठी में 100 से अधिक प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button