धर्मान्न उगायें किसान, अन्न-जल की शुद्धि की गारण्टी दे सरकार
-परमाराध्य शङ्कराचार्य जी महाराज
महाकुंभ नगर २४ जनवरी
बीके यादव/ बालजी दैनिक
सं. २०८१ माघ कृष्ण दशमी तदनुसार दिनाङ्क २४ जनवरी २०२५ ई
तैत्तिरीयोपनिषद् में “अन्नं ब्रह्मेति व्यजनात” वाक्य कहकर सनातन वैदिक हिन्दू आर्य परमधर्म में अन्न को देवता अथवा भगवान् ही नहीं, अपितु ब्रह्म के रूप में स्वीकार कर अन्न की आराधना करने का उपदेश किया गया है। इस अन्न के उत्पादन और खाए गये अन्न को पचाने के लिए जल की भी अपरिहार्य भूमिका है। यादृशं भक्षयेदन्नं तादृशी जायते मतिः। दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते।। जैसा अन्न खाते हैं वैसी ही शुद्धि होती है। दीपक अन्धकार का भक्षण करता है। अतः काजल उगलता है। लोक में भी “जैसा खाएं अन्न वैसा हो तन-मन” कहा जाता है। इस आलोक में हर सनातनी को अन्न-जल का न केवल सम्मान करना चाहिए अपितु शुद्ध अन्न-जल का आग्रह रखना चाहिए। भारत की सरकार का यह कर्तव्य है कि अपनी हर गारण्टी से पहले वह देश के नागरिकों को खाने के लिए शुद्ध अन्न और पीने के लिए शुद्ध जल की गारण्टी दे।
उक्त बातें परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती १००८ ने आज अन्न-जल की शुद्धि विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कही।
आगे कहा कि देश के किसानों से भी हम कहना चाहेंगे कि वे हम सनातन धर्मानुयायियों के उपयोग के लिए “धर्मान्न” का उत्पादन आरम्भ करें और इसके लिए धर्मान्न उत्पादक कम्पनी बनाकर परमधर्मसंसद् १००८ द्वारा बताई गई विधि से धर्मान्न उगाएं और उसे अपनी स्वयं की निर्धारित कीमत पर हम परमधार्मिकों को उपलब्ध कराएं। हमारा मानना है कि अन्न देवता हैं और किसान उसका आवाहक पुजारी। इन्हीं किसान पुजारी के माध्यम से हम अन्न देवता का आराधन कर सकते हैं।
शङ्कराचार्य जी ने कहा कि अतः किसानों को उनके उत्पाद पर उनकी निर्धारित क़ीमत देना आवश्यक भी है और उचित भी। अन्न-जल में अशुद्धि आ ही इसलिए रही है क्योंकि हमने किसानों को उसके उत्पाद की सही क़ीमत देना बन्द कर दिया। सोने-चाँदी के बिना हमारा जीवन चल सकता है तब भी उनकी क़ीमत बढ़ रही है और जिस अन्न-जल के बिना हम जीवित भी नहीं रह सकते उस अन्न-जल की निरन्तर अनदेखी हो रही है।
शुक्रवार को विषय स्थापना हर्ष मिश्रा ने किया।
चर्चा में सन्त गोपालदास जी ने अन्न-जल की शुद्धि तथा देश में किशनों की समस्या पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा की देश की संसद् जब हमारी बटे नहीं सुन रही तो यह आवश्यक है कि एक वैकल्पिक संसद बने जो स्थायी हो। इस निर्माण हेतु उन्होंने अपनी २५ एकड़ भूमि देने की घोषणा की। इसी क्रम में पूर्व विधायक व किसान नेता सरदार वरियन्द्र मोहन सिंह, किसान नेता बलराज भाटी विश्व के पहले किसान देवता मंदिर के किसानपीठाधीश्वर शैलेन्द्र योगीराज , साध्वी संगमेश्वरी जी, रोहित जाखड जी, लेखा शिवाल दीपक पाण्डेय आदि लोगों ने अपने व्याख्यान प्रस्तुत किए। पूर्व विधायक सरदार विरेन्द्र मोहन सिंह ने धर्म संसद में शंकराचार्य जी को एक पत्र दिया जिससे किसानों को एम एस पी मिलें इसके लिए आशीर्वाद मांगा। जिसपर शंकराचार्य जी ने कहा कि हम आपकी बात को केन्द्र की सरकार को अवगत कराएंगे।
प्रकर धर्माधीश के रूप में देवेन्द्र पाण्डेय जी ने संसद् का सञ्चालन किया।
सदन का शुभारम्भ जायोद्घोष से हुआ। अन्त में परमाराध्य ने धर्मादेश जारी किया जिसे सभी ने हर-हर महादेव का उदघोष कर पारित हुआ।
उक्त जानकारी शंकराचार्य जी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी शैलेन्द्र योगिराज सरकार ने दी है।