उत्तर प्रदेशलखनऊ

हौसलों की उड़ान……….

विकलांग होते हुए भी खेती, परचून और गौसेवा में मिसाल बने उमाशंकर……..

मोहनलालगंज। लखनऊ. विकास खंड मोहनलालगंज के गांव कनेरी स्थित गौ आश्रय केंद्र में हाल ही में एक अद्भुत मिसाल देखने को मिली, जहां विकलांगता को अपने हौसले के आगे नतमस्तक कर उमाशंकर ने गौसेवा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। रायबरेली जिले के ग्राम सोनहरा, पोस्ट बछरावां निवासी उमाशंकर, जो पैरों से विकलांग हैं, ने कनेरी गांव की गौशाला में तेरह कुंतल भूसा और दो कुंतल आटा गायों के भोजन हेतु दान स्वरूप भेंट किया।

उमाशंकर न केवल कृषि कार्य करते हैं, बल्कि अपनी परचून की दुकान भी चलाते हैं। जीवन की कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। भागवत पुराण और शिव पुराण में वर्णित गौसेवा के महत्व को पढ़ने-सुनने के बाद उनके मन में संकल्प जगा कि वे अपनी खेती से प्राप्त भूसा और हरा चारा हर वर्ष गौशालाओं को दान करेंगे।सर्दियों के मौसम में भी जब चारे की कमी महसूस होती है, उस कठिन समय में उमाशंकर ने अपने खेत में हरा चारा बोकर उसे निःस्वार्थ भाव से विभिन्न गौशालाओं को अर्पित किया। उनकी इस प्रेरक पहल की जानकारी जब कनेरी गांव के ग्राम प्रधान बृजेश मौर्य को मिली, तो उन्होंने स्वयं उमाशंकर से भेंट कर उनके सेवा कार्यों का कारण और प्रेरणा जानने का प्रयास किया।

गौरतलब है कि तेज धूप और भीषण गर्मी के समय अक्सर समाचारों में गौशालाओं में पानी और चारे की कमी के दर्दनाक दृश्य सामने आते हैं। ऐसे में उमाशंकर की पहल न केवल गायों के लिए संजीवनी का कार्य कर रही है, बल्कि यह अन्य किसानों के लिए भी एक आदर्श और प्रेरणा का स्रोत बन गई है। यदि हर किसान अपने खेत से निकला हुआ थोड़ा सा भूसा भी गौशालाओं में दान कर दे तो गौमाता तथा अन्य बेसहारा पशुओं का कल्याण सुनिश्चित हो सकता है।

शिक्षिका और समाजसेविका रीना त्रिपाठी नेउमाशंकर के इस कार्य की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे निस्वार्थ सेवाभावी युवाओं को समाज के विभिन्न आयोजनों में सम्मानित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि निस्वार्थ भाव से गौसेवा करना हमारे धर्मग्रंथों में अत्यंत पुण्यकारी माना गया है, जो न केवल लोक में बल्कि परलोक में भी कल्याणकारी सिद्ध होता है।

आज के समय में जहां युवाओं में समाजसेवा और दान-पुण्य की भावना कमजोर होती जा रही है, वहीं उमाशंकर अपनी त्रि-साइकिल पर सवार होकर विभिन्न गौशालाओं का भ्रमण कर अपने संकल्प को निभा रहे हैं। उनकी यह सेवा भावना न केवल उनके जैसे अक्षम व्यक्तियों के लिए बल्कि संपूर्ण समाज के लिए एक प्रेरणा है।उमाशंकर आज वास्तव में भारत माता के सच्चे सपूत और हिंदू धर्म के रक्षक के रूप में सामने आए हैं। उनके द्वारा दिखाई गई सेवा, समर्पण और आत्मबल का यह अद्भुत उदाहरण आने वाली पीढ़ियों को निस्वार्थ सेवा का संदेश देता रहेगा।

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