गंगा समग्र नदियों की दशा पर करेगा मंथन
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सात से नौ फ़रवरी तक होगा राष्ट्रीय कार्यकर्ता संगम
देशभर से पांच हजार कार्यकर्ता जुटेंगे संगम तट पर
महाकुंभ नगर ०६ फरवरी
बीके यादव/बालजी दैनिक
गंगा जी और अन्य नदियों की निर्मलता और अविरलता के काम में लगा संगठन गंगा समग्र नदियों की दशा पर तीन दिन मंथन करेगा। सात से नौ फरवरी तक संगम तट पर देशभर से करीब पांच हजार प्रतिनिधि और विशेषज्ञ जल से जुड़े विभिन्न विषयों पर चर्चा कर विचार साझा करेंगे।
गंगा समग्र के राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामाशीष जी ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि बदलती जीवन शैली ने जलवायु को खतरे में डाल दिया है। जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण से सबसे ज्यादा नुकसान पानी को हो रहा है। जीवनदायक जल स्रोत या तो अनुपयोगी हो रहे हैं यह फिर नष्ट हो रहे हैं। इस स्थिति को तत्काल न सुधारा गया तो सम्पूर्ण जीव जगत का खतरे में पड़ जाएगा। गंगा समग्र इस दिशा में जनजागरण और रचनात्मक कार्यों के आधार पर काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि यमुना, बेतवा, असि, वरुणा, गोमती, चंबल, केन, पाण्डु आदि नदियां अंत में गंगा में मिलती हैं। इसलिए गंगा को स्वस्थ्य रखने के लिए इन नदियों को स्वस्थ्य रखना आवश्यक है। यूपी, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, बंगाल, हरियाणा, दिल्ली, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि प्रदेशों के कार्यकर्ता सात से नौ फ़रवरी तक इन नदियों की सेहत सुधारने पर चर्चा करेंगे। गंगा, उसकी सहायक नदियों और अन्य जल तीर्थों को लेकर किए जा रहे प्रयासों को साझा करेंगे और आगामी योजनाओं का वृत्त प्रस्तुत करेंगे।
रामाशीष जी ने कहा कि गंगा समग्र समाज को स्थानीय नदियों से जोड़ने के लिए वृहद अभियान चला रहा है। इन नदियों के सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व को आमजन तक पहुंचाया जाएगा। उन्होंने बताया कि गंगा और दूसरे जल तीर्थों को ठीक करने के लिए आवश्यक है कि वर्षा का ज्यादा से ज्यादा जल संग्रह किया जाए। कुआ, तालाब, सरोवर आदि को भी ठीक करना होगा। इसके बिना नदियों को नया जीवन नहीं दिया जा सकता। गंगा के किनारे के गावों में तालाबों का सुदृढ़ तंत्र विकसित करना चाहिए। इससे पर्यावरण की स्थिति तो सुधरेगी ही, जैविक चक्र बेहतर होगा। राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामाशीष जी ने बताया कि गंगा समग्र की कार्य पद्धति त्रिस्तरीय है। इसमें रचनात्मक कार्य, सांगठनिक और जनजागरण शामिल हैं।