उत्तर प्रदेशप्रयागराज

कैसे होते हैं अखाड़ों में Police Stations?

Police Stations: महाकुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में चल रहा है. सभी दशनामी शैव अखाड़ों की अपनी अलग कोतवाली है. इन अखाड़ों का कोई भी विवाद कोर्ट और कचहरी में नहीं जाता है. महाकुंभ में स्नान करने वाले अखाडों का अपना कानून होता है. आइए जानते हैं इसके बारे में.. सभी दशनामी शैव अखाड़ों की अपनी अलग कोतवाली(Police Stations) है. इनमें बाकायदा कोतवाल तैनात रहते हैं. इन्हीं कोतवालों के जिम्मे छावनी की आंतरिक सुरक्षा होती है. यही कोतवाल अखाड़े के नागा समेत अन्य साधुओं को नियंत्रित करने का काम करते हैं. इन अखाड़ों के अपने कानून भी हैं. किसी भी तरह का नियम तोड़ने पर सजा भी मिलती है.

कोर्ट कचहरी नहीं जाते विवाद

नियम तोड़ने वाले को सजा दी जाती है. इन अखाड़ों की सजाएं भी अजब-गजब होती है. हालांकि, गंभीर अपराध पर अखाड़े से निष्कासन तक का विधान है। अखाड़ों में अपना आंतरिक विवाद कोर्ट कचहरी लेकर जाने का रिवाज नहीं है. आपस में बैठकर विवाद का निपटारा होता है.धर्मध्वजा के नीचे ईष्ट देव की कुटिया स्थापित होने के साथ ही छावनी में भी कोतवाली(Police Stations) बन जाती है. यहां पर सुरक्षा के लिए अलग-अलग कोतवालों की नियुक्ती होती है. निरंजनी अखाड़े के महंत महेंद्रानंद की मानें तो नागा संन्यासी ही कोतवाल बन सकते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक समय-समय पर कोतवालों को भी बदला जाता है.

Police Stations

कोतवाल को दिया जाता है चांदी से मढ़ा दंड

छावनी में जो कोतवाल होते हैं उनको खास तौर से चांदी से मढ़ा दंड दिया जाता है. छावनी में गड़बड़ी करने वाले इनके पास लाए जाते हैं.कोतवाल किसी को दंड दे सकते हैं. अगर गलती छोटी है तो छोटा दंड दिया जाता है, अगर मामला गंभीर होता है तो उसकी पेशी चेहरा मोहरा में होती है. यहां उसे अपनी सफाई पेश करनी पड़ती है. जिसके बाद पंच ही उसके बारे में फैसला करते हैं.अगर किसी पर विवाह करने, दुष्कर्म करने, आर्थिक अपराध जैसे आरोपों की पुष्टि हो जाती है तो उसे अखाड़े से बाहर निकाल दिया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है कि उनको अपनी भूल का अहसास हो जाए.अधिकांश सजा आर्थिक न होकर धार्मिक होती है कोतवाल की मौजूदगी में गंगा में 108 डुबकी लगानी होती है. अखाड़े में सबके पास जाकर उनको दातून देना होता है. अखाड़े में सजा के दौरान छावनी के भीतर एक सप्ताह तक सफाई करना होता है.

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