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स्तन कटवा दिया लेकिन …. झुकी नहीं “वो”

देश को आजादी दिलाने के लिए कई वीरों और वीरांगनाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी है। और उनका बलिदान आज भी भारत की किताबों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। आज उन्हीं इतिहास की किताबों में से हम आपके लिए एक ऐसी ही वीर महिला की कहानी लेकर आए हैं, जिसने बचपन से ही स्वतंत्रता आंदोलनों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था और भारत की पहली महिला जासूस बनी। इतना ही नहीं, इस महिला ने नेता जी सुभाष चंद्र बोस की जान बचाने के लिए अपने ही पति की हत्या कर दी थी। आइए आपको बताते हैं देश की महान बेटी नीरा आर्या के बारे में।

बहुत कम उम्र में ही उनकी शादी एक ब्रिटिश राज अधिकारी से हो गई थी। सीआईडी अधिकारी होने के साथ-साथ उनके पति श्रीकांत जयरंजन दास अंग्रेजों के कट्टर समर्थक थे। अंग्रेज से शादी करने के बाद भी नीरा का भारत के प्रति लगाव अटूट रहा। इस दौरान वह ‘आजाद हिंद फौज’ की ‘झांसी रेजिमेंट’ में भी शामिल हुईं। इस दौरान उन्हें तत्कालीन बर्मा (म्यांमार) में काम करने का भी मौका मिला। इस बारे में उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है।

नीरा आर्य का जन्म 5 मार्च, 1902 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के खेखरा में हुआ था। जब वह छोटी बच्ची थी, तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। प्रसिद्ध उद्योगपति सेठ छज्जूमल ने उन्हें और उनके इकलौते भाई को गोद ले लिया था। नीरा ने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा कलकत्ता में पूरी की। नीरा ने हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी में शिक्षा प्राप्त की, हमेशा अपने देश के प्रति गहरा लगाव रखती थी और उन्होंने कम उम्र में ही स्वतंत्रता की गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था।

नेताजी ने नीरा को कहा ‘नागिन‘

माना जाता है कि ब्रिटिश जासूसी के लिए एक सेक्शन था, जिसे ‘झांसी रेजिमेंट’ कहा जाता था। इस दौरान उनके पति को सुभाष चंद्र बोस की जासूसी करने और मौका मिलते ही उनकी हत्या करने का आदेश दिया गया था। यह जानने के बाद नीरा उनसे नाराज़ हो गईं। एक दिन उनके पति ने नेताजी को गोली मार दी थी, जिसके बाद नीरा ने अपने पति के पेट में चाकू घोंपकर उनकी हत्या कर दी। इसके लिए नेताजी ने उन्हें ‘नागिन’ कहा था।

जासूसी करते वक्त अंग्रेजों ने किया गिरफ्तार

नेताजी की करीबी नीरा को जासूसी के आरोप में अंग्रेजों ने हिरासत में लिया था और बाद में हत्या के आरोप में अंडमान के कालापानी में ले जाया गया था। उन्होंने अपनी आत्मकथा में बताया, ‘अंधेरे बंद छोटे कमरों में महिला कैदियों को यहां रखा गया था।’ वह अपनी सारी कठिनाइयों को भूल गई और केवल इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि वह इस द्वीप जेल में स्वतंत्रता सेनानियों से कैसे मिलेगी, उनका समर्थन करेगी और अपने देश को ब्रिटिश शासन से कैसे मुक्त करेगी।

अंग्रेजों ने यातना देते हुए काटा दाहिना स्तन

कारावास के दौरान अंग्रेजों ने उन्हें तरह-तरह की यातनाएं दीं। उन्हें लोहे की जंजीरों में बांधकर रखा जाता था। उनकी गरिमा का लगातार हनन किया जाता था। एक अंग्रेज जेलर ने उनसे पूछा, ‘नेताजी कहां हैं?’ उन्होंने जवाब दिया, ‘सब जानते हैं कि उनकी मृत्यु विमान दुर्घटना में हुई थी।’ लेकिन अंग्रेज नहीं माने और बार-बार पूछते रहे, जिस पर नीरा ने कहा, ‘वे हमारे दिलों में हैं।’ इस पर अंग्रेज जेलर ने पहले उनकी गरिमा का हनन किया और फिर एक लोहार की मदद से उनका दाहिना स्तन काट दिया।

आजादी के बाद मिली जमानत

इतिहासकारों का कहना है कि अगर नीरा ने सुभाष चंद्र बोस के बारे में जानकारी दी होती तो उसे जमानत मिल जाती। लेकिन उसने उनका साथ नहीं छोड़ा। आजादी के बाद जेल से रिहा होने के बाद उसने अपना पूरा जीवन फूल बेचने में बिताया। उसने सरकारी पेंशन की पेशकश ठुकरा दी। यह शानदार आत्मा 1998 में इस दुनिया से चली गई। पत्रकार तेजपाल सिंह धामा ने अपने साथियों के साथ मिलकर उनका अंतिम संस्कार किया।

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