हरियाणा जैसी हिट चाहिए तो पहले हरियाणा जैसा बनना होगा
सुशील कुमार ‘ नवीन ‘
लोकसभा चुनाव में बैकफुट पर रही भाजपा का हरियाणा विधानसभा चुनाव में फ्रंटफुट पर लौटना किसी बड़े आश्चर्य से कम नहीं रहा है। लोकसभा चुनाव में एमरजेंसी मोड तक जा पहुंची भाजपा को हरियाणा की जीत ने ‘ ग्लूकोस ’ का काम किया। जो ‘ डायग्नोस ’ और ‘ ट्रीटमेंट ’ हरियाणा में कामयाब रहा, उसे अक्षरत: लागू कर सेंट्रल लीडरशिप महाराष्ट्र में भाजपा को फिर से सत्ता में लाना चाहती है। महाराष्ट्र और हरियाणा के हालात और राजनैतिक समीकरण में दिन-रात का अंतर है। ऐसे में हरियाणा जैसी ‘ क्विक रिकवरी ‘ चाहिए तो हरियाणा जैसा ‘ प्रिकॉशन’ (सावधानी) भी जरूरी है। सीधी सी बात है हरियाणा जैसा रिजल्ट चाहिए तो पहले हरियाणा जैसा बनना होगा।
महाराष्ट्र भारत का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है और क्षेत्रफल के हिसाब से तीसरा। यह देश के सबसे बड़े वाणिज्यिक और औद्योगिक केंद्रों में से एक है। यहां 20 नवंबर को मतदान होना है। परिणाम 23 नवंबर को आयेंगे। करीबन पौने दस करोड़ वोटर्स अपनी सरकार चुनेंगे। महाराष्ट्र में कुल 288 विधानसभा सीटें हैं। यहां ‘ महाविकास अघाड़ी ‘ और ‘ महायुति’ के बीच सीधी टक्कर है। वर्तमान में सत्ताधारी ‘ महायुति ’ के पास 218 सीटें हैं। इस गठबंधन में भाजपा, शिवसेना, एनसीपी (अजित पवार), बीवीए, पीजेपी, मनसे, आरएशपी, पीडब्ल्यूपीआई, जेएसएस शामिल हैं। इन सभी दलों को मिलाकर जो गठबंधन बना है उसे ही ‘ महायुति ’ नाम दिया गया है। दूसरी तरफ ‘ महाविकास अघाड़ी ‘ के पास इस चुनाव से पहले 77 सीट हैं। वर्तमान में विपक्ष की भूमिका निभा रहे इस गठबंधन में में कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार), शिवसेना (उद्धव ठाकरे), माकपा, एसडब्ल्यूपी शामिल हैं। इस गठबंधन को महाविकास अघाड़ी का नाम दिया गया है।
भारतीय जनता पार्टी इस बार के विधानसभा चुनाव में यहां हरियाणा जैसे हिट फार्मूले से सत्ता वापसी चाह रही है। जो इतना सहज और सरल नहीं है। सत्ता के समीकरण को जानने से पहले हरियाणा और महाराष्ट्र की राजनैतिक स्थिति और माहौल को जानना भी जरूरी है। हरियाणा में कुल 90 सीटें है तो यहां तीन गुना से भी 18 सीटें अधिक है। ऐसे में यहां हरियाणा जितनी मेहनत से काम नहीं चलने वाला। यहां हरियाणा से तीन गुना अधिक मेहनत करनी होगी।
महाराष्ट्र में अक्टूबर 2019 में हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिला था। बड़ी पार्टी होने के बावजूद भाजपा फिर भी सत्तालाभ प्राप्त नहीं कर पाई। वैचारिक मतभेद के चलते शिवसेना ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ नया गठबंधन बनाकर राज्य सरकार बनाई। इसमें उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने। तीन वर्ष बाद 2022 में हुई एक नई उठापटक में एकनाथ शिंदे ने 40 विधायकों के साथ बीजेपी के साथ सरकार बनाई। 2023 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का अजीत पवार गुट भी सरकार में शामिल हो गया। पिछले पांच वर्ष में यहां तीन मुख्यमंत्री बने। दूसरी तरफ हरियाणा में भाजपा फ्री हैंड रही। 2019 में भले ही भाजपा को बहुमत से 6 सीट दूर रहने पर जेजेपी का सहारा लेना पड़ा हो। पर यहां स्थिति महाराष्ट्र की तरह नहीं रही। साढ़े 4 साल तक सरकार बिना किसी रुकावट के चलती रही। लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदलकर एक तरफ भाजपा ने जेजेपी से किनारा किया, वहीं नायब सिंह सैनी के रूप में नया चेहरा देकर सबको चौका दिया।
बात हालिया चुनाव की हो तो यहां भी हरियाणा महाराष्ट्र से इतर है। महाराष्ट्र में भाजपा अकेली मजबूत नहीं है यहां उसे शिवसेना, एनसीपी (अजित पवार), बीवीए, पीजेपी, मनसे, आरएशपी, पीडब्ल्यूपीआई, जेएसएस के साथ मिलकर ‘ महायुति ’ गठबंधन बनाना पड़ा है। दूसरी तरफ हरियाणा में भाजपा ने इस बार बिना किसी का साथ लिए अपने दम पर चुनाव लड़ा है। और कामयाबी भी पाई है। यहां यह भी जानना जरूरी है कि हरियाणा में भाजपा के सामने सीधी टक्कर में कांग्रेस में थी, जबकि महाराष्ट्र में भाजपा का अपने ‘ महायुति ‘ और विपक्ष के ‘ महाविकास अघाड़ी ‘ गठबंधन से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष से मुकाबला है। ऐसे में गठबंधन की शर्तों में बंधी होने के कारण भाजपा यहां 148 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है, जबकि एकछत्र राज के लिए 288 सीटों में 145 सीटों को जीतना जरूरी है। ऐसे में भाजपा यहां सबसे बड़ी पार्टी भी उभरकर कर भी आती है तो समर्थन तो लेना पड़ेगा, जबकि हरियाणा में भाजपा ने 89 सीटों पर चुनाव लड़ा और 48 सीटों पर विजय पाकर स्पष्ट बहुमत हासिल किया।
जितना कहना आसान होता है, उसे यथार्थ में लाना उससे कई गुणा अधिक कठिन होता है। भाजपा को महाराष्ट्र में सत्ता चाहिए तो उसे हरियाणा के हिट फार्मूले को सिर्फ बातों में नहीं यथार्थ में भी लागू करना होगा। सबसे पहले विपक्ष को नेरेटिव बनाने से रोकना होगा। आज के चुनावों में नेरेटिव की बहुत बड़ी भूमिका रहती है। लोकसभा चुनाव में संविधान में बदलाव की कोशिश और आरक्षण के मसले पर विपक्ष भाजपा के खिलाफ नेरेटिव बनाने में काफी हद तक कामयाब रहा था। हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पूरी सतर्कता बरती। विपक्ष को नेरेटिव बनाने का मौका ही नहीं दिया। अपितु के आग्नेय शस्त्रों को ब्रह्मास्त्र की तरह उन्हीं पर वापस चलवा दिया। भाजपा को महाराष्ट्र में भी इस पर पूरा काम करना होगा।
दूसरी तरफ हरियाणा भाजपा ने हथियार भी विपक्ष के इस्तेमाल किए। प्रत्येक राजनैतिक दल में आपस में ही सत्ता को लेकर नाराजगी वाले नेता जरूर होते हैं। हरियाणा में तो यह किसी से छिपा भी नहीं है। कांग्रेस नेता कुमारी शैलजा की नाराजगी को भी भाजपा ने खूब भुनाया। पार्टी तक में शामिल होने का न्योता दे दिया। अनुसूचित जाति समुदाय से लगातार संपर्क रख वोट हासिल करने में कामयाबी पाई। महाराष्ट्र में भी इस तरह के समीकरण को भाजपा यहां भुना सकती है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा ओवर कॉन्फिडेंस में थी। एक एक वोटर तक पहुंच नहीं हो पाई। इसका खामियाजा चुनाव में भुगतना पड़ा। चुनाव के बाद जब वोटिंग परसेंटेज की समीक्षा की गई तो सामने आया कि हर पोलिंग बूथ में बहुत से ऐसे लोग रहे जो वोट देने नहीं गए। अधिकांश भाजपा समर्थक थे। इस पर उसी समय से ध्यान दिया गया कि सबसे पहले एक-एक पोलिंग बूथ को मजबूत किया जाए। प्रयास रहे कि भाजपा का एक-एक वोटर पोलिंग बूथ तक वोट जरूर लाया जाए। गांवों के बूथों पर भी कार्यकर्ताओं को इस बारे स्पष्ट निर्देश जारी किए गए थे। ठीक यही स्थिति भाजपा ने महाराष्ट्र में मानी। ऐसे में विधानसभा चुनाव के लिए इस बार बूथ वाइज वोटर्स पर खासकर भाजपा की नजर है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव की तैयारी करते वक्त हर विधानसभा सीट पर बीजेपी की वास्तविक स्थिति का आंकलन किया गया था। यहां उन सीटों पर ज्यादा फिक्स किया गया, जहां भाजपा जीत या जीत के करीब थी। महाराष्ट्र में भी भाजपा को हरियाणा के इस फार्मूले को लागू करना होगा।
सबसे आखिर और भाजपा की अप्रत्याशित जीत के कर्णधार आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की ताकत को भी महाराष्ट्र में पूरा प्रयोग करना होगा। हरियाणा की जीत में जो हिट फार्मूला बार-बार चर्चा में है। उस हिट फार्मूले को यथार्थ में लाने का श्रेय संघ परिवार को ही है। सरकार विरोधी लहर के बावजूद बिना झंडे और बिना बैनर पर्दे के पीछे रहकर कामयाबी का नया इतिहास लिखने में संघ के योगदान को भाजपा ने स्वीकारा भी है। माइक, मंच, माला,माया और मीडिया से दूर रहकर संघ ने जो किया, उसे महाराष्ट्र में भी किया जा सकता है। हरियाणा की टीम का अनुभव के मामले में महाराष्ट्र में सदुपयोग किया गया तो इसका फायदा मिलना स्वाभाविक है। भाजपा को महाराष्ट्र में भी हरियाणा जैसी हिट मिले, इन्हीं उम्मीदों के साथ यूसुफ़ बहजाद की इन पंक्तियों के साथ लेख का समापन करता हूं :-
कुछ ऐसे सिलसिले भी चले ज़िंदगी के साथ
कड़ियां मिलीं जो उनकी,तो ज़ंजीर बन गए।
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