विचार

काल्पनिक मूर्ति स्थापना में शिवपुत्री नर्मदा नदी का अपमान 

आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार

भारतीय संस्कृति में गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी, गोदावरी सरयू ओर नर्मदा आदि नदियों द्वारा प्राणिमात्र का पोषण ओर संवर्धन करने से उन्हे माता के समान माना है वही इन नदियों का प्राकट्य हमारे त्रिदेव ब्रम्हा, विष्णु ओर महेश से किसी न किसी प्रसंग में जुड़ा होने से इन्हे देवीतुल्य पूजनीया ओर आदरणीय माँ का सर्वोच्च स्थान दिया गया है किन्तु किसी भी वेद पुराण –शास्त्र में इन देवी स्वरूप माताओं की मूर्ति गली चौराहों आदि सार्वजनिक स्थलों पर खुले आकाश के नीचे स्थापित किए जाने का उल्लेख नहीं है, अगर कोई कही इस प्रकार करता है तो लोक अपवाद में इससे होने वाले देवीय प्रकोप व प्राकृतिक उपद्रव के कष्ट सभी नगरजनों को झेलना होता है। धर्मसूत्रों के अनुसार अनंतमूर्ति सनातन नारायण ही जगतरूपी मूर्ति है, उनके विभिन्न अवतारों के देव एवं देवी स्वरूप की सुंदरतम से सुंदरतम कल्पना को मूर्ति के रूप में शिल्पांकन कर उनके भव्य विशाल मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित कर नियमित आराधना-साधना से उनकी कृपा पाने का चलन है। हम प्रकृति को माता मानते है ओर सभी नदियां जलस्वरूप पवित्र पावन है इसलिए उनके  वास्तविक मूल स्वरूप के दर्शन जिस स्थान पर किस आकार प्रकार के जल रूप में प्रवाहित है उसी रूप में किए जाते है, न की किसी दृश्यमान कन्या या नारी के दिव्यरूप में संभव है। इस कलिकाल में नदियों के रूप में प्रवाहित ये सभी माताए अपने तटों के वासियों सहित उनके दर्शन, मार्जन ओर स्नान को आने वाले करोड़ों लोगों के जीवन को पापों से मुक्त कर उनका कल्याण कर उन्हे मोक्ष प्रदान करती है। अगर जलरूप माता को माता के स्वरूप में दृश्यमान किया जाए तो वे किसी प्रतिमा, प्रतिमान उपमान की कल्पना भर है न की माँ के अदृश्य देवी स्वरूप का प्रामाणिक सत्य के रूप में उनके दर्शन संभव हो सकेंगे ?

     सार्वजनिक गली चौराहे पर नर्मदा कि मूर्ति रखने से पहले माँ के विषय में पता होना चाहिए कि माँ नर्मदा सत्य, ज्ञान, प्रभुता, अनन्तता, न्याय, उत्कृष्टता, परात्परता और सर्वशक्तिमानता इत्यादि जैसे गुण धारण करती है ओर उनके स्वरूप में सुन्दरता, प्रेम, शक्ति, प्रखरता, करुणा, अनन्यता, शाश्वतता और कृपा जैसे गुण हैं। यह गुण उन्हे सनातन काल से मिले है जब प्रलयकाल में भी विलय न होने वाली दिव्य विग्रहमयी नर्मदा अपने अस्तित्व ओर दिव्यता को कायम रख सकी थी ओर मार्कण्डेय मुनि ने अनेक प्रलयों में भी नर्मदा जल का अभाव नहीं देखा, इसलिए उन्हे कभी भी न मरने वाली होने से ‘नर्मदा’ नाम दिया गया। दिव्यमूर्तियों के दिव्य विग्रह का रहस्य सर्वसाधारण की बुद्धि का विषय नहीं होता। अलौकिक देवी देवताओं के चरित्र लोक के आलोक में नहीं आते। दिव्यदृष्टिहीन आलोचकों के लोचन क्या समालोचन भी अलोचन सिद्ध हो जाते हैं ! चर्मचक्षुओंसे प्रत्येक प्राणी पाञ्चभौतिक प्रपञ्च का ही निरीक्षण करते हैं, आध्यात्मिक आधिदैविक गति उनके लिये सर्वदा अगोचर ही बनी रहती है। श्री नर्मदाका विशेष महत्त्व हमें स्कन्द और पद्मपुराणके रेवाखण्डों में जो सैकड़ों अध्यायोंमें निबद्ध हैं उनसे भलीभांति अवगत होता है।

     नर्मदा कि महिमा वायुपुराण,शिवपुराण,महाभारत,वाशिष्ठसंहिता, ब्राह्मीसंहिता आदि अनेक ग्रन्थों में है, तथापि रेवातट वासियों के लिए ‘रेवापुराण’ (खण्ड) तो आज भी श्रीमद्भागवतकी भाँति श्रवणा- नुष्ठानका विषय बना हुआ है। इन सभी ग्रन्थोंमें नर्मदा के इस धराधाम पर प्रगट होने की कथाएँ कल्पभेद से विलक्षण ढंग से वर्णन की गई हैं। तीरथों सहित नर्मदा तट पर जितनी भी मूर्तिया प्रचलित है चाहे वह परमात्मा की शक्तियों की हो या उनके अवतारों की, जब उन्हे किसी ने इन चर्मचक्षुओं से नहीं देखा तब उनकी आकृति को स्वरूप कैसे मूर्ति में शिल्पांक्न किया जा सकता है, जबकि जो भक्त अपनी दिव्य दृष्टि से दर्शनलाभ करा है वह परम आनंद में डूब जाता है ओर इन बातों कि खबर दुनियावालों को नहीं देता है तब कि स्थिति में मूर्तिकार द्वारा बनाई मूर्ति उसके मस्तिष्क कि सीमारेखा भर होती है, जो कल्पना मात्र होगी। काल्पनिक मूर्ति पुजा को ईश्वर प्राप्ति का साधन बनाकर आत्मविकास की सीढ़ी के रूप मे उपयोग किया जा सकता है न कि भावातिरेक दिव्य विग्रहमयी माँ नर्मदा का दर्शन ओर अवगाहन सभी के लिए सुलभ ओर संभव होगा। भले यह संभव न भी हो किन्तु पूरी ताकत से पूरे शहर को खड़ा होना चाहिए ओर धर्मध्वजा वाहक सभी साधु सन्यासी, आचार्यागण आदि सभी एकजुट होकर माँ नर्मदा के सम्मान को बचाए रखते हुये मूर्ति का विरोध दर्ज करना  चाहिए तब ही सार्वजनिक चौराहे पर खुले आकाश के नीचे माँ नर्मदा कि मूर्ति न लग सके ।

     आप थोड़ा विश्राम कर इस विचार को कार्यान्वित कराये। क्या यह शिवपुत्री नर्मदा का घोर अपमान नहीं है, अगर नगरप्रशासन जानबूझकर उनका अपमान कर रहा हो ओर पूरा शहर दर्शक बना हो तो नर्मदा के प्रकोप से ये लोग खुद को कैसे बचाएंगे इसकी चिंता ओर चिंतन करने वाले धर्म के ठेकेदारों का मौन कही अभिश्राप न बन जाए यह भी नर्मदा के भक्तों की नींद हराम किए है। नर्मदा को माता के रूप मे अपार श्रद्धा रखने वाले भक्तों का कहना है की अगर भोपाल चौराहे पर खुले आकाश के नीचे माँ नर्मदा का मूर्तिरूप शिल्पांकन स्थापित किया जाता है तो वह सनातन धर्म के विपरीत होगा। पृथ्वी पर नर्मदा एक मात्र नदी रूपी माता है जिसकी परिक्रमा कि जाती है, जिसमें परिक्रमावासी साधुओं का कहना है की नर्मदा माँ को मंदिर में स्थान दिया जाकर माँ के रूप में प्राण प्रतिष्ठित किया जाता है जो दर्शन के दरम्यान सभी को बोलती हुई सजीव आभाषित होती है ओर प्रतिदिन सुबह शाम नित्य पूजा अर्चन होता है जो आत्मिक उन्नति का प्रतीक होती है जबकि भोपाल चौराहे पर लगने वाली मूर्ति से यह संभव न होने से माँ नर्मदा का घोर अपमान होगा, इससे लोग प्रसन्नता ओर आनंद से भरे नहीं बल्कि भयभीत दिखाई दिये ओर एक संत जी बोले कि माँ नर्मदा की मूर्ति का प्रदर्शन अहंकार करने वाली मनुष्यता का है जो पशु रूप में यह करने को बाध्य है।

     बाध्यता की बात की जाये तो विशेष रूप से इस बात को विस्मृत करने की बाध्यता को समझना होगा कि नर्मदापुरम में भोपाल चौराहे पर इसी नगरपालिका ने स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा लगाए जाने का निर्णय लिया था ओर प्रतिभूति कागज कारखाने से प्राप्त सवा करोड़ की राशि में चंद्रशेखर आजाद की मूर्ति लगनी थी किन्तु योजनाओं के बजट के कई गुना हो जाने से कब किस अधिकारी के द्वारा चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा के स्थान पर माँ नर्मदा की मूर्ति लगाए जाने का निर्णय लिया गया इसकी तह तक जाने वाली मीडिया एक-एक पेज का विज्ञापन पाते ही इस सच को पचा जाती है ओर अपनी कलम से सच को प्रगट करने का साहस खो देती है ओर मनमाने निर्णय जनता के लिए मुसीवत बन जाते है, जो कम से कम अब यहा इन निर्णयों का विरोध के साथ पूर्व कार्ययोजना पर काम शुरू होना चाहिए।

     नर्मदा के सम्मान की बात की जाये तो जिसे प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने कल यानि 19 सितंबर 2024 को इंदौर में नर्मदा को राज्य की सांस्कृतिक विरासत मानते हुये उनके सम्मान में नर्मदा की पवित्रता को बनाए रखने हेतु नर्मदानदी के किनारे सभी धार्मिक शहरों ओर कस्बों के आसपास शराब ओर मांस विक्रय पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर पुण्यप्रदायनी माँ नर्मदा का सम्मान करने का आव्हान किया है फिर उनकी सरकार में एक छोटे से नगरपालिका निकाय नर्मदापुरम द्वारा भोपाल चौराहे पर नर्मदा कि मूर्ति रखने का निर्णय क्या नर्मदा का अपमान नहीं? जटाशंकरी माँ नर्मदा जी के महत्त्व को प्रदेश का मुखिया इतना महत्व दे तब नर्मदा के तट पर पैदा हुये, पले बढ़े ये कौन नेता अधिकारी किस मद अहंकार के कारण नास्तिक हो गए? उन्हे नर्मदा के भक्त सभी आस्तिकों को समझना होगा जो नर्मदा का मंगलमय गुणगान उसी प्रकार कर रहे है जैसे वैदिक संहिताओं से आरम्भ होकर महर्षि प्रणीत-पुराणेतिहास आगमादि पवित्र ग्रन्थ राशियों में भलीभांति नर्मदा के यश गाँ की वृद्धि होती रही है ओर आज भी अगणित सुधीजन इसकी महनीय कीर्ति का वर्णन करते हुए कृतकृत्य हो रहे हैं।

अंत में समझना होगा अगर हम सार्वजनिक रूप से नर्मदा की मूर्ति को खुले आकाश तले बिना वैदिक विधि विधान का पालन किए रखने की बात करे तो कांग्रेस सरकार यह गलती राजधानी भोपाल मे यादगार-ए-शाहजहांनी पार्क मे दोहरा चुकी है जिसका पूरे प्रदेश में नर्मदा भक्तो ने विरोध किया था। चूकि भोपाल की तत्कालीन सुल्तान जहां बेगम के सम्मान में शाहजंहा बेगम की याद में मौजूदा सरकारों के खिलाफ रैलियों, धरना ओर आंदोलन का मुख्य केन्द्र रहा शाहजहानी पार्क सरकार के खिलाफ रैलियों ओर धरनों के रूप में उपयोग होता था जिसे विकसित कर उसमे नर्मदा की मूर्ति लगाकर प्रदेशवासियों के लिए खोल दिया गया किन्तु यहाँ पतित पावनी माँ नर्मदा की प्रतिमा लगाए जाने से पूरे प्रदेश में सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ ओर परिणाम स्वरूप माँ नर्मदा की उस मूर्ति जिसके एक हाथ में गुलाब का फूल था उसे सरकार ने जनाक्रोश के समझ झुकते हुये मूर्ति का माँ नर्मदा के स्थान पर अनामिका कर दिया। दूसरा उदाहरण लोकतन्त्र के मंदिर मध्यप्रदेश विधानसभा का ही ले लीजिये जंहा 7 जनवरी 2023 को  विधानसभा में मंदिर के लिए  भूमिपूजन के अवसर पर इस परिसर में लगी मां नर्मदा की प्रतिमा को लेकर हिंदू संगठनों का विरोध मुखर हुआ ओर सरकार को झुकना पड़ा। अगर नगरपालिका परिषद इससे सबक नही लेती है तो यही उसके पतन का कारण भी भुगतेगी, उचित होगा अपने पहले निर्णय पर कायम रहकर वह सौंदर्यीकरण मे देश की आजादी के सिपाही चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा स्थापित कर माँ नर्मदा से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांग ले, तो निश्चित ही नर्मदे त्वं महाभागा सर्वपापहरी भव । स्वदप्सु याः शिलाः सर्वाः शिवकल्या भवन्तु ताः ॥ संसार के समस्त पापों को हरण करने वाली नर्मदा जिस प्रकार अपने जल से सभी पाषाणों को शिव रूप में पूजनीय बना देती है वह करुणामयी माँ भी अपनी कृपा बनाए रखेगी।

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