विचार

खंडपीठ न होने से पौने दो करोड़ लोगों को सुलभ नहीं है न्याय

आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 37 साल पहले वर्ष 1987 में भोपाल ओर नर्मदापुरम संभाग के जिले के लोगों को समय पर सस्ता ओर सुलभ न्याय उपलब्ध कराये जाने के लिए उच्च न्यायालय जबलपुर खंडपीठ लाने के लिए 4 महीने भोपाल न्यायालय में कलमबंद हड़ताल की गई थी जिसके समर्थन में इन दोनों संभाग के सभी जिलो की बारकौंसिल द्वारा समर्थन दिया जाकर शामिल हुए थे। भोपाल संभाग के हर जिले, तहसील में यह हड़ताल का ज़ोर था ओर सारे न्यायालयीन मामले कोर्टों कि तलबंदी के कारण थम से गए थे। तब से आज तक भोपाल संभाग सहित नर्मदापुरम संभाग के 8 जिलों का नेतृत्व करने वाले 36 विधायकों ओर 4 सांसद हो गए जिनके क्षेत्र के पोने दो करोड़ नागरिकों को स्थान की दूरी के कारण समय ओर पैसे की बर्बादी का दंश झेलना पड़ रहा है जबकि केंद्र ओर राज्य सरकार इन संभागों सहित मध्यप्रदेश में अनेक तहसीलों को जिले का दर्जा देकर वहाँ जिला सत्र न्यायालय व कई तहसीलों में अतिरिक्त जिला न्यायालय की सुविधा देकर उन्हे सुविधाओं से नबज़ 10 संभाग ओर 55 जिले का विस्तार कर सुविधाये देने का दावा कर अपनी प्रशंसा कराये किन्तु भोपाल नर्मदापुरम संभाग मुख्यालय पर खंडपीठ की स्थापना न कर इनके साथ अन्याय करने में स्पीड ब्रेकर बनी है। परिणाम स्वरूप यहाँ के पौने दो करोड़ नागरिक सरकारी तंत्र के कुंभकरणी नींद सोने ओर राजनीति के पदों पर आसीन रहने वाले वकीलों सहित इस संभाग की सभी जिलों की बार कौंसिल ओर वकीलों के प्रयास न करने का खामियाजा भुगत रहे है।

नर्मदापुरम संभाग के नर्मदापुरम, हरदा ओर बेतुल जिले के 52 लाख नागरिकों सहित प्रदेश की राजधानी भोपाल संभाग के जिले विदिशा, रायसेन, भोपाल, सीहोर एवं राजगढ़ के 1 करोड़ 18 लाख नागरिकों का विधानसभा मे प्रतिनिधित्व करने के लिए विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 129 से लगायत 164 में कुल 36 विधानसभा क्षेत्र है जिसमे 32 विधायक ओर 4 सांसद सत्तारूढ़ भाजपा के है जो अपनी सरकार से अपने क्षेत्र के नर्मदापुरम संभाग ओर प्रदेश की राजधानी भोपाल संभाग में उच्च न्यायालय की खंडपीठ की स्थापना कराने में सक्षम है। इन दोनों संभागों के जिलों में जिला सत्र न्यायालय के समक्ष सिविल, आपराधिक व राजस्व मामलों के प्रकरणों में पारित निर्णयों सहित कतिपय मामलों में अपील, रिट याचिका, जनहित याचिका आदि प्रस्तुत करने के लिये क्षेत्राधिकार प्राप्त उच्च न्यायालय जबलपुर की शरण लेनी होती है, जो नर्मदापुरम ओर भोपाल संभाग मे खंडपीठ आने से लोगों को राहत मिल सकेगी, इस गंभीरता को नागरिक अधिकार जनसमस्या निराकरन समिति भोपाल के द्वारा समझते हुये प्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव से 15 दिसंबर 2014 को राजभवन में एक ज्ञापन सौपा गया था वही हरदा जिले के अधिवक्ता प्रकाश टांक वर्ष 2019 से उनके करीबी इन्दौर उच्च न्यायालय से जोड़े जाने की हिम छेड़े हुये है। 3 जिलें जिसमें हरदा, खंडवा एवं बुरहानपुर है का उच्च न्यायालय जबलपुर में है जबकि देखा जाए तो हरदा से जबलपुर करीब 400 किलोमीटर, हरसूद खंडवा से करीब 550 किलोमीटर एवं बुरहानपुर से 650 किलोमीटर की दूरी जबलपुर हाईकोर्ट की है जबकि इंदौर उच्च न्यायालय इन तीनों जिलों 150 किलोमीटर दूर होने से नजदीक है जिसमें इन जिलों के निवासियों व्यापारियों, वकीलों,पक्षकारों को न्याय हेतु अनावश्यक अधिक दूरी तय कर न्याय हेतु भटकना नहीं पड़ेगा ओर साथ ही धन,ईंधन, समय आदि के अपव्यय से बच सकेंगे तथा संविधान की मूल भावना के अनुरूप शीघ्र/सस्ता/सुलभ न्याय मिल सकेगा।

जो महंगा ओर समय की कछुआ चाल की लंबे समय की दूरी तय करते है उनका भी बुरा हाल है, नर्मदापुरम में वे अपवाद ही कहे जा सकते है जिन्हे उच्च न्यायालय व सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिलने के बाद भी जीते जी न्याय नही मिल सका ओर वे आदेश की पालना का आज भी इंतजार कर रहे है ओर सरकार उनके आदेश पालन कराने में बौनी साबित हो रही है । उच्च न्यायालय में वर्षों से अनेक जमीन जायदाद के मामले लंबित है जिसमें सालों में तारीख लगी है किन्तु सुनवाई ओर निर्णय का अभाव में लोग अपनी भूमि गंवा बैठे है जिसका एक उदाहरण नर्मदापुरम जिले के ग्राम कुलामडी का ही ले लीजिये जिसमें वहाँ का निवासी लक्ष्मीनारायण कटारे है जिनकी भूमि पर पिछले 20 सालों से एक व्यक्ति काबिज वह 15 सालों तक उच्च न्यायालय में घूमता रहा ओर वकील चक्कर लगवाते रहे जब उसका बेटा खुद वकालत कर कौर्ट पहुंचा तब उच्च न्यायालय का फैसला उसके पक्ष में आया तव विरोधी सुप्रीम कौर्ट गया जहा से भी उसके पक्ष में निर्णय आया ओर जिसका पालन कराने जिला न्यायालय के समक्ष मामला लंबित है। इससे स्पष्ट है कि इस प्रकार के अथवा आपराधिक मामलों की सुनवाई की जो प्रक्रिया है और उसमें जिस तरह की देर लगती है, उसे अपराध करने वालों ने अपने उच्च न्यायालय को ढाल बना रखा है ओर यही कारण है कि बरसों तक धीमी गति से चलने वाली न्यायिक प्रक्रिया का लाभ लेने हेतु ताकतवर लोग अपराध करने के बावजूद प्रक्रिया की घुमावदार गलियों में न्यायिक फैसले को टलवाते रहे है। टालने कि इस प्रक्रिया में न्याय पाने में जो देरी ओर बिलंब होता है वह इतना लंबा ओर कष्टदायक हो जाता है जिससे न्याय मिलना एक तरह से अन्यायपूर्ण ही हो जाता है। कहावत है देर है अंधेर नहीं कि सोच भी धीमी न्यायिक प्रक्रिया के सामने धुंधली होकर समाप्त हो जाती है जहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी जिला प्रशासन पालन न करा सके वहाँ न्याय होकर भी अन्याय का होना है जिसका जीता जागता प्रमाण नर्मदापुरम में गुरु झुन्नू सेठ कि बेरवन वाली भूमि जो एसएनजी स्कूल ओर कन्या शाला के सामने है पर से अतिक्रमण का न हट पाना है। घुमावदार और लंबी-धीमी न्यायिक प्रक्रिया का यहाँ पालन न होने का कोई विकल्प नहीं है अगर उत्तरप्रदेश का मामला होता तो बुलडोजर से न्याय संभव था, यहा कि गंदी राजनीति ओर उभरते अपराधतत्व के सामने सुप्रीमकोर्ट का निर्णय नतमस्तक है, इससे शर्मनाक ओर क्या हो सकता है। राज्य सरकार ने इन संभागों को त्वरित न्याय के साधनों से दूर तो किया ही है वही न्यायालयीन आदेश का पालन न कराये जाने का सम्मान भी खोकर समर्पण किए हुये है।

 

देखा जाये तो मध्य प्रदेश प्रान्त की स्थापना के समय वर्ष 1956 में उच्च न्यायालय जबलपुर में स्थापित किये जाने के साथ एक पक्ष ग्वालियर में तथा दूसरा पक्ष इंदौर में रखा गया। आज नर्मदापुरम ओर भोपाल संभाग तेजी से विकास पथ पर अग्रणी है। पूर्व में तब होशंगाबाद अब नर्मदापुरम जिले की सीमाएं नरसिंहपुर, हरदा हुआ करती थी अब नरसिंहपुर एवं हरदा पृथक जिले हैं जहाँ जिला एवं सत्र न्यायालय है। भोपाल संभाग की सीमाएं नर्मदापुरम संभाग मुख्यालय नर्मदापुरम से मिली हुई है. इन परिस्थितियों में भोपाल संभाग के सभी जिलों सहित नर्मदापुरम संभाग के जिलों के एक करोड़ सत्तर लाख लोग अपील, रिट याचिका, जनहित याचिका आदि मामलों के लिये जबलपुर उच्च न्यायालय पहुंचते है जिससे उन्हें लम्बी दूरी तय करने में समय एवं पैसे की बर्बादी के बाद न्याय पाना महंगा साबित हो रहा है। अधिकांश नागरिक इन्ही परेशानियों को देखते हुये उच्च न्यायालय से न्याय पाने की मंशा मंशा त्याग कर पूर्वाग्रहों में जीवन खपाने को विवश है तब ऐसे में इस संभाग के नागरिकों के लिये सामाजिक न्याय की परिकल्पना एक सपना भर रह जाती है। समय की मांग ही नहीं अपितु आवश्यक है कि जिस प्रकार विधानसभा ओर लोकसभा की सीमाओं के साथ राजनैतिक रूप से नगरपालिका, वार्डों की सीमाओं का सीमांकन कर वार्ड से लेकर लोकसभा सीट तक बद्लाब किया जाता है तब न्याय पाने के लिए उच्च न्यायालय की खंडपीठ के लिए बढ़ती जनसख्या को ध्यान में रखकर सभी को सस्ता ओर समय पर न्याय पाने के लिए स्थान की दूरी को क्यों नही कम किया जा सकता है। सिद्धान्त है कि न्याय से वंचित अगर न्यायालय नहीं पहुंच पा रहा है तो न्यायालय स्वयं पहुँचे और न्याय प्रदान करें। नर्मदापुरम संभाग मुख्यालय सहित प्रदेश कि राजधानी भोपाल में आज उच्च न्यायालय जबलपुर की एकल खण्डपीठ स्थापित किया जाना समय कि आवश्यकता है ताकि नर्मदापुरम एवं भोपाल संभाग के जिलों कि तहसील के दूरदराज़ गांवों तक के नागरिकों को जबलपुर आने-जाने ने समय एवं पैसा बर्बाद करने से राहत मिले और उन्हें सस्ता एवं सुलभ न्याय मिल सके,जो अभी संभव नहीं है।

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