उत्तर प्रदेशप्रयागराज

ज्योतिर्मठ शङ्कराचार्य ने किया सनातन संरक्षण परिषद् का गठन

महाकुंभ नगर 12 जनवरी

बीके यादव/बालजी दैनिक

परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती १००८ की मौजूदगी में संवत् २०८१ पौष शुक्ल चतुर्दशी 12 जनवरी सोमवार को परम धर्म संसद में सनातन संरक्षण परिषद का गठन हुआ। इसी मौके पर संसद में उत्तराखण्ड की बदरीश गाय का आगमन हुआ, जिससे परमधर्म संसद और भी पवित्र हो गई। सनातन धर्म के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है और आज सत्र को 33 करोड़ देवी- देवताओं का भी आशीर्वाद मिल गया। बाहर इन्द्रदेव भी वर्षा कर अपना आशीर्वाद दे रहे थे।
जयोद्घोष के साथ परमधर्म संसद का सत्र शुरू हुआ। प्रश्नकाल में धर्मांसदों द्वारा पूछे गए सभी प्रश्नों का उत्तर परमाराध्य ने दिया।
विषय स्थापना सतना मध्यप्रदेश से श्री देवेन्द्र पांडेय जी ने की। धर्मांसद डा. मनीष तिवारी कौशांबी ने सनातन संरक्षण परिषद गठित करने का प्रस्ताव रखा। देवेन्द्र पांडेय जी ने कहा कि धर्माचार्यों का नियंत्रण धर्मस्थलों में नहीं होने के कारण आज सभी मंदिरों पर सरकार ने कब्जा कर लिया है।
संसद सत्र में ही साध्वी पूर्णाम्बा जी व नरोत्तम पारीक जी ने साप्ताहिक पत्र जय ज्योतिर्मठ का विमोचन परमाराध्य के कय-कमलों से कराया।
संजय जैन जी को गौ प्रतिष्ठा ध्वज स्थापना का संरक्षक बनाया गया। गुजरात में सभी जिलों में गो प्रतिष्ठा ध्वज स्थापना की जिम्मेदारी दी गई।
ब्रजेश सती जी ने कहा कि बदरीश गाय का संरक्षण आवश्यक है। सत्र में 27 धर्मांसदों ने अपने विचार रखे।
परमाराध्य ने कहा कि हिन्दू धर्म अपने धर्मस्थानों-मठों-मन्दिरों-गुरुकुलों-गोशालाओं आदि से अनुप्राणित होता है। इसलिए इन हिन्दू धर्मस्थलों की देखभाल और प्रबन्धन का सीधा प्रभाव हिन्दू धर्म के मानने वालों और उनके प्रति धारणा बनाने वालों पर पड़ता है। इसलिए आवश्यक है कि इनके संरक्षण और प्रबन्धन में लगे लोग सनातन धर्म की न केवल गहरी जानकारी रखते हों अपितु अपेक्षित है कि वे हिन्दू धर्म को जी रहे हों और उनकी गहरी अनुभूति से भी सम्पन्न हों। परन्तु वर्तमान में देखा जा रहा है कि अनेक हिन्दू धर्मस्थलों की व्यवस्था को सरकार अपने धर्मनिरपेक्ष अधिकारियों के माध्यम से संभालने लगी है और यत्र-तत्र तो अन्य धर्म के लोगों को भी इस कार्य में लगा दिया है।
परमधर्मसंसद् १००८ समस्त सनातन वैदिक हिन्दू आर्य परमधर्म के मानने वालों के लिए यह परमधर्मादेश जारी करती है कि –
‘‘धर्म स्थलों पर धार्मिक रीति से नियंत्रण स्थापित हो इसलिए धर्मस्थानों, मंदिरों, मठों की व्यवस्था या प्रशासन में किसी भी पद पर अधार्मिक, विधर्मी, नास्तिकों की नियुक्ति न करें तथा सरकारी हस्तक्षेप से इनको मुक्त किया जाए। अन्यथा जैसा शास्त्रों में कहा गया है कि तीर्थ या धर्मस्थल का सार चला जाएगा जो कि हिन्‍दू धर्म की अपूरणीय क्षति होगी ।
अत्युग्रभूरिकर्माणो नास्तिका रौरवा जनाः। तेऽपि तिष्ठन्ति तीर्थेषु तीर्थसारस्ततो गतः॥
श्रीमद्भागवत माहात्म्य १/७२
प्रसिद्ध मंदिरों, धर्मस्थलों की गरिमा एवं रक्षा’ के लिए देश की मान्य सनातनी संस्थाओं के प्रमुखों के नेतृत्व में एक सनातन संरक्षण परिषद् (सनातन बोर्ड) का गठन किया जाता है।

परमधर्मसंसद् का शुभारंभ जयोद्घोष से हुआ। संसदीय सचिव के रूप में श्री उमाशंकर रघुवंशी जी उपस्थित रहे। प्रकर धर्माधीश गुजरात के किशोर दवे जी रहे। पर्व स्नान के कारण दो दिन के अवकाश के बाद 15 जनवरी को परमधर्मसंसद् का आरम्भ होगा।

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