उत्तराखण्डराज्य

केदारनाथ में 6 महीने तक नहीं बुझता दिया

केदारनाथ धाम के 5 अनसुने रहस्य

ब्यूरो रिपोर्ट , 18 दिसंबर , धार्मिक मान्यता अनुसार केदारनाथ मंदिर को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग माना जाता है. साथ ही यह सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है| ये मंदिर उत्तराखंड के चार धामों में भी शामिल है। ये धाम मंदाकिनी नदी के किनारे 3581 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है| ये उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है. जो पत्थरों के शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है. ये ज्योतिर्लिंग त्रिकोण आकार का है | केदारनाथ मंदिर के दर्शन करने के लिए साल भर इंतजार करना पड़ता है। कहते हैं कि बाबा केदार जिस भक्त को दर्शन देने की ठान लेते हैं, उसे दर्शन देकर ही रहते हैं।

कहा जाता है कि केदारनाथ धाम की कहानी बेहद अनोखी और दिलचस्प है। भगवान शिव का यह भव्य मंदिर मंदाकिनी नदी के घाट पर स्थित है। मंदिर के गर्भगृह में हर समय अंधकार रहता है और दीपक के माध्यम से भोलेनाथ के दर्शन किए जाते हैं। यहां स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है, जिस वजह से इस स्थान का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। मान्यता है कि बाबा केदारनाथ के दर्शन के बाद ही बाबा बद्रीनाथ के दर्शन करने की मान्यता है, अन्यथा यहां की गई पूजा निष्फल हो जाती है। इसके साथ धार्मिक ग्रंथों में यह भी बताया गया है कि यहां बाबा केदारनाथ सहित नर-नारायण के दर्शन करने से सभी पाप मुक्त हो जाते हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।

केदारनाथ मंदिर ४०० साल तक बर्फ में दबा था

शास्त्रों में बताया गया है कि केदारनाथ धाम में सबसे पहले मंदिर का निर्माण पांचों पांडवों ने किया था। लेकिन वह समय के साथ विलुप्त हो गया । फिर आदि गुरु शंकराचार्य जी ने इस मंदिर का पुनः निर्माण किया था जो 400 वर्ष तक बर्फ में दबा रहा। तब इस मंदिर का निर्माण 508 ईसा पूर्व जन्मे और 476 ईसा पूर्व देहत्याग गए आदि शंकराचार्य ने करवाया था। इस मंदिर के पीछे ही उनकी समाधि है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है। पहले 10वीं सदी में मालवा के राजा भोज द्वारा और फिर 13वीं सदी में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया।

400 सालों तक कैसे बर्फ में दबा रहा केदारनाथ का मंदिर और जब बर्फ से बाहर निकला तो पूर्णत: सुरक्षित था। देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट के हिमालयन जियोलॉजिकल वैज्ञानिक  के अनुसार 13वीं से 17वीं शताब्दी तक यानी 400 साल तक एक छोटा हिमयुग आया था जिसमें हिमालय का एक बड़ा क्षेत्र बर्फ के अंदर दब गया था। उसमें यह मंदिर क्षेत्र भी था। वैज्ञानिकों के अनुसार मंदिर की दीवार और पत्थरों पर आज भी इसके निशान देखे जा सकते हैं। दरअसल, केदारनाथ का यह इलाका चोराबरी ग्लेशियर का एक हिस्सा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियरों के लगातार पिघलते रहने और चट्टानों के खिसकते रहने से आगे भी इस तरह का जल प्रलय या अन्य प्राकृतिक आपदाएं जारी रहेंगी।

इस धाम की विशेषता यह है कि भगवान केदारनाथ के दर्शन के लिए ये मंदिर केवल 6 महीने ही खुलता है और 6 महीने बंद रहता है. ये मंदिर वैशाखी के बाद खोला जाता है और दीपावली के बाद पड़वा {परुवा तिथि} को बंद किया जाता है. जब 6 महीने का समय पूरा होता है तो मंदिर के पुजारी इस मंदिर में एक दीपक जलाते हैं. जो कि अगले 6 महीने तक जलता रहता है 6 महीने बाद जब ये मंदिर खोला जाता है तब ये दीपक जलता हुआ मिलता है| पुराणों की भविष्यवाणी के अनुसार इस क्षेत्र के तीर्थ लुप्त हो जाएंगे। माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा और भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे। पुराणों के अनुसार वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में ‘भविष्यबद्री’ नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा।

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