मूंगफली की खेती में नवाचार के माध्यम से क्षेत्र विस्तार हेतु केवीके कटिया कर रहा निरंतर प्रयास

सीतापुर में मूंगफली की खेती के क्षेत्र विस्तार हेतु किसानो को किया जा रहा है प्रशिक्षित
आईआई जी आर गुजरात एवं केवीके कटिया के संयुक्त प्रयास से मूंगफली खेती को मिलेगा बढ़ावा
ब्यूरो रिपोर्ट अनूप पाण्डेय
सीतापुर जनपद के कटिया कृषि विज्ञान केंद्र-II, द्वारा मूंगफली की खेती में नवीनतम तकनीकों का समावेश करते हुए भारतीय मूंगफली अनुसन्धान संस्थान, जूनागढ़, गुजरात के सहयोग से किसानों की आय और क्षेत्रीय तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए व्यापक और समन्वित प्रयास किए जा रहे हैं। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप सीतापुर जनपद मूंगफली उत्पादन में एक बार फिर अपनी पहचान स्थापित करने की दिशा में अग्रसर है।
केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. दया शंकर श्रीवास्तव ने बताया कि तिलहन आदर्श ग्राम योजना के तहत केंद्र हरगांव ब्लॉक के मुमताजपुर, एलिया ब्लॉक के हेमपुर, और पिसावां ब्लॉक के खोजेपुर गांवों में निरंतर काम कर रहा है। इसके अतिरिक्त, परसेंडी ब्लॉक के अमरापुर और बिसवां ब्लॉक के कमुआ गांवों को भी आदर्श ग्राम के रूप में अंगीकृत किया गया है। इन गांवों में मूंगफली की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए उन्नत बीज उत्पादन और बीज ग्राम के विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
प्रसार वैज्ञानिक एवं “अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना” (वोलेंटियर केंद्र) के समन्वयक श्री शैलेन्द्र सिंह ने बताया कि भारतीय मूंगफली अनुसंधान निदेशालय, जूनागढ़, गुजरात के सहयोग से इस केंद्र पर “एक्रीप” केंद्र संचालित है, जिसके अंतर्गत मूंगफली की खेती में नवाचार और तकनीकी सुधार के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं साथ ही नवोन्मेषी तकनीकों के प्रसार और प्रदर्शन हेतु किसानों को प्रशिक्षण एवं तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान किया जा रहा है प्रशिक्षण के दौरान किसानों की मौजूदा जानकारी और पारंपरिक तकनीकों का मूल्यांकन करते हुए उन्हें नई तकनीकों से जोड़ना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि कृषकों के पूर्व ज्ञान का आकलन प्रशिक्षण कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करने में मददगार साबित हो रही है।
हेमपुर ग्राम में आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में फसल वैज्ञानिक डॉ. शिशिरकांत सिंह ने मूंगफली की खेती में सस्य क्रियाओं के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, बीज शोधन, उन्नत किस्मों का चयन, समय पर बुवाई और फसल चक्र जैसी वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाकर न केवल उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है, बल्कि फसल को कीट और पोषण संबंधी समस्याओं से बचाना भी संभव है। उन्होंने यह भी बताया कि मूंगफली जैसी तिलहनी फसलों में टिकाऊ और उन्नत तकनीकों को अपनाकर जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना किया जा सकता है।
मृदा वैज्ञानिक श्री सचिन प्रताप तोमर ने समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन (INM) पर चर्चा करते हुए कहा, मृदा स्वास्थ्य की जांच, जैविक घटकों जैसे वर्मी कम्पोस्ट, जैविक उर्वरकों और नैनो-फर्टिलाइजर का संतुलित उपयोग फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार करता है उन्होंने किसानों को मृदा परीक्षण और पोषण संतुलन बनाए रखने के वैज्ञानिक तरीकों से अवगत कराया।
प्रशिक्षण के दौरान किसानों को येलो स्टिकी ट्रैप, जैविक कीटनाशकों, जैव उर्वरकों और समन्वित कीट प्रबंधन (IPM) तकनीकों का प्रदर्शन किया गया। किसानों को इन उपकरणों और सामग्रियों का व्यावहारिक अनुभव प्रदान करने के लिए जरूरी सामग्री भी वितरित की गई।