विचार

देवी के लांगुरिया शिव, हनुमान, भैरव ओर ब

आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार

देवीभक्ति के मार्ग पर लांगुर का बड़ा महत्व है ओर देश के विभिन्न प्रांतों, क्षेत्रों में नवदुर्गा स्वरूपा देवी के लांगुर के दृष्टांत मिलते है जिसमें लांगुर को लेकर विभिन्नता, देखी जा सकती है जिसमें जहा कुछ लोग शिव को लांगुर मानते हैए कुछ भैरव को तो कोई हनुमान को यह स्थान देते हैए जबकि वास्तव में बटुक, भैरव, वीर, बेताल आदि देवी के लांगुर है। लांगुर का शाब्दिक अर्थ पुत्र माना गया है ओर शिव.शक्ति पति पत्नी के रूप में प्रतिष्ठित होने से शिव के लांगुर होने की बात लोकमान्यता में उचित प्रतीत नही होती। भैरव को भवानी के पुत्र के रूप में पूजा जाता है इसलिए भैरव के लांगुर होने को सहज ही स्वीकारोकित मिली हुई है ओर अनेक देवी गीत में लांगुर के रूप में भैरव का गुणगान होने से भैरव देवी के लांगुर होने व जनसामान्य के देव के रूप में विशेष स्थान रखते है। ऐसे ही सीता को देवी का स्वरूप मानकर उनके लांगुर के रूप में हनुमान को सर्वोच्च स्थान मिला हुआ है। देवी की भक्ति में लांगुरिया गीत में लांगुर को पूरा सम्मान देकर गीतकारों ने देवी माँ की सच्ची आराधना की है परंतु आज कुछ व्यावसायिक लोगों ने लांगुरिया गीत में विकृत मानसिकता का परिचय देकर लांगुर की भक्ति का उपहास करते हुये गंदे ओर अश्लील गायन ओर अभिनय से भोंडापन दिखाकर वास्तविक लांगुरिया गीत के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर दिया है।

लांगुर शब्द की व्युत्पत्ति लांगूल से हुई है ओर लांगुर गीत उद्दाम रसिकता लिए भक्ति या मनौती लिए होते है जिसमें दुर्दम पौरुष के रूप में कुवारे देवता के रूप में हनुमान को लांगुरिया का स्थान दिया हुआ है तो दूसरी ओर भैरव देवता को यह स्थान देवी ने दिया है तो कुछ क्षैत्रों में लोग देवी भक्त ज्ञानु भक्त को भी लांगुर मानकर पूजते है। हनुमान को लांगुर माना है। तभी से देवी के लांगुर के रूप में हनुमान को महत्व देने के प्रसंग बहुत है जो चलन में है किन्तु हनुमान राम के भक्त है देवी के वीर नहीं। राम की भक्ति में ही उन्होने देवी सीता की खोज की ओर उनसे अजर अमर होने का वरदान प्राप्त किया किन्तु वे देवी के वीर लांगुर हो यह प्रमाण कही नहीं मिलता। इसके बाद भी हनुमान की मूर्ति को ही वस्तुतया बिना किसी प्रामाणिक आधार पर समाज के अनेक वर्ग स्वप्रेरणा से लांगुर मानकर लांगुरिया शब्द की स्वीकारोक्ति देकर देवी को प्रसन्न करने में बहुत आगे है। नवरात्रि पर दुर्गापूजन में कन्या के साथ लांगुर के रूप में छोटे लड़कों को भोजन कराने कि परंपरा है। कन्या दुर्गा को माना है, फिर लांगुर शिव कैसे हो सकते है?

लोकवार्ता की पगडंडियों में डॉ॰ सत्येन्द्र लिखते है कि कन्या के साथ लांगुर का क्या अर्थ होगा इसका अर्थ शिव ही हो सकता है। तांत्रिक आवरण में कन्या योनि ओर लांगुर, शिश्न या लिंग। इसका समर्थन संस्कृत कोश भी करते है। इसमें लांगुर का अर्थ पुंछ या लंगूर ही नही दिया शिश्न भी दिया है। वे अपनी बात सिद्ध करने के लिए उदाहरण देते है कि देवीपूजन में आठीयावरी में आंटे के लाठी ओर छ्ल्ले बनाकर कढ़ाई में तलकर चढ़ाए जाते है। ये योनि ओर लिंग के ही तांत्रिक प्रतीक है। दूसरी ओर डाक्टर हजारीप्रसाद द्विवेदी लिखते है कि.लांगुर छोटा बालक है तो वात्सल्य उमड़ता है, ओर लांगुर शिव है तब पुण्य भाव से शिव उभरता दिखता है। लकुट ओर लाठी भी साथ है। यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि लांगुर ओर शिव में आंतरिक अभिन्नता होते हुये भी लांगुर, लांगुर है ओर शिव, शिव है। इसलिए शिव लांगुर है इसकी प्रामाणिकता सिद्ध नही होती।

आखिर लांगूर कौन है? अवधी लोकगीत में हनुमान को लांगुर माना है तो ब्रज ओर बुन्देली लोकगीत में मान्यता भैरवनाथ, बटुकनाथ सहित प्रथक-प्रथक पात्रों के प्रति गहरी निष्ठाओं के साथ भिन्नताए देखने को मिलती है। इससे उभरकर आए मतभेद में लांगुर के दो रूप देखे जा सकते हैए एक वे जो वास्तविक लांगूर है ओर दूसरे वे जो आरोपित लांगूर है। शिव ओर हनुमान विशिष्ट है इसलिए इन्हे लोकगीत में मान्य लांगूर कि श्रेणी से हटकर वास्तविकता के अन्वेषण कि ओर बढ़ना ठीक होगा। श्रीमति मालती शर्मा के शोध ओर अनुसंधान के अनुसरण् लांगुर में एक ओर चंडी का बटुक रूप तो दूसरी ओर दैत्यरूप समाया है, इन दोनों को मिलकर लांगुरा बना है। बटुकोत्पति में शिवपुराण कि कोटि रुद्रसहिंता की कथा का उल्लेख करते हुए वे बताती है कि दधीच ब्राम्ह्ण के दुष्ट पुत्र सुदर्शन की तपस्या से प्रसन्न हो, पार्वती सुदर्शन को पुत्र बनाकर शिव कि गोद में समर्पण करती है। शिव सुदर्शन को यज्ञोपित दे सदैव गोल तिलक लगाने का निर्देश दे देवीकार्य ओर ब्रह्मभोज में चंडी के बटुक कि मुख्यता का वरदान देते है। पार्वती सुदर्शन पुत्र को अपने निकट स्थापित करती है तथा अपने ओर अपने भक्तों के मध्य अपनी पूजा को बटुक पूजा ही मानती है।

भगवान बिष्णु एक लीला से दैत्य सती का सतीत्व भ्रष्ट करते है तब दूसरी लीला से उनके पति का वध करते है। पति का कटा बाजू ओर कटा सिर देखकर सती को गर्भपात हो जाता है। जिससे बड़े बड़े दांतों वाला बालक रूप रख लेता है जिसे देख सती डर जाती है । भगवान बालक के दांत तोड़ देते हैए तब बालक पूछता है, अब मैं खाउंगों काय से। तब भगवान कहते है रे बालक तू माँ देवी के पास जा ओर उनकी सेवा कर, माँ तुझे लपसी खिलावेगी । इस प्रकार दैत्य पुत्र जरासंध का यह बालक जो उसकी माँ वृन्दा से उत्पन्न हुआ लांगुर के रूप में पूजा जाता है। कोई वृन्दा के इस बालक से पुंछता है. भैया लांगुरा रे अपनी जाति तो बताए तब वह बताता है किण् वम्मन के हम बालका, उपजे तुलसी पेड़। माता का सहायक यह लांगुर माँ को बहुत प्रिय है जो छ माह तक सोता ही नही ओर माँ कि सेवा करता है। देवी आज्ञा दे तो वह असुर के भी नौ.नौ कीलें ठोक देए उन्हे निकाल देए माँ कही चली जाये तो व्याकुलता से उन्हे तलाश करे। देवी माँ का कृपापात्र इतना जो माँ के जस गाये भजन करे तो उनकी भी सेवा करे ओर उन्हे गांजे की चिलम भर.भर कर पिलाये।

 

देवी माँ के वीर. काला भैरव ओर गोरा खेतपाल चामुंडा माँ के अखाड़े के वीर है। माँ का परम भक्त राजा जयदेव परमार से काला भैरव जा भिड़ता है तब वह माँ के वीर काला भैरव को लंगडा कर बंदी बना लेता है जिसे माँ कंकाली भाटनी का रूप रखकर राजा से दान स्वरूप में छुड़ा कर लाती है तब यह काला भैरव लंगड़ाए लंगराए लगुरा लंगूरवा कहलाया। इसके अलावा लोकड़ा वीर को भीमाकाली ने लांगुरवा माना। भीमाकाली का मंदिर हिमाचल प्रदेश के महासू जिले के सहारण स्थान पर है ओर इस देवी को बाणासुर की पुत्री ऊषा ने प्रसन्न कर प्रधूम्न को पति रूप में पाया। तांत्रिको को मानना है कि लांगुरों में 52 वीर भी आते है ओर उनका सरदार नाहरसिंह है जो पीपल के पेड़ में रहता है जिसका आव्हान करने पर सभी 52 लांगुरा उपस्थित होकर भूत प्रेत से मुक्ति दिलाते है। नाहरसिंह के साथ 5 वेताल वीर भी लांगूरे माने गए है जो गृह देवता के रूप में ज्यादा प्रतिष्ठित है ओर जो लोग इन्हे पूजने लगे तो ये प्रसन्न रहते है लेकिन जैसे ही इनकी पूजा बंद कर दे तो ये घर परिवार को नष्ट करने से भी नहीं चूकते है। कन्या पूजा के साथ लांगुर का सम्मान देवी पूजन में एक नए अध्याय को जोड़ता है जहा कन्या देवी तो है ही तभी देवी के भक्त ओर पुजारी देवी के रूप में कन्या की पूजा करके कन्यारूपी देवी को गीतों में गाकर झूमते हुये भक्ति करते है ओर देवी के सेवक लांगुर को देवी के साथ गीतों में याद करके लांगुरिया की तान छेड़ते है जो देवी स्वरूप कन्या ओर देवी भक्त लांगुर की अनन्य भक्ति ओर असीम कृपा पाने का सरलतम उपाय है जिसकी स्वरलहरियों में श्रोता गायक के साथ सारी रात लांगुरिया गीतों में सराबोर होते है।

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