मानव को हमेशा भगवान पर अटूट विश्वास रखना चाहिए- पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज
महाकुंभ नगर ३१ जनवरी
बीके यादव/बालजी दैनिक
शुक्रवार की कथा में पूज्य जगद्गुरु स्वामी रामदिनेशाचार्य जी महाराज (अयोध्या), पूज्य बाल योगी अर्पित दास जी महाराज जी ने शामिल होकर व्यासपीठ का आशीर्वाद प्राप्त किया एवं कथा पंडाल में उपस्थित भक्तों को संबोधित किया।
शुक्रवार की कथा के दौरान पूज्य महाराज श्री ने बताया कि धर्म वही है जिसे हमारे शास्त्र, वेद और ऋषि-मुनि स्वीकार करते हैं। धर्म कोई मनगढ़ंत विचार नहीं है, बल्कि यह शास्त्रों और संतों द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों पर आधारित होता है।
जब तक कोई विचार, परंपरा या आचार-विचार हमारे सनातन धर्मग्रंथों और ऋषियों द्वारा स्वीकृत नहीं होते, तब तक उन्हें धर्म नहीं माना जा सकता। इसलिए, सच्चे धर्म को समझने और अपनाने के लिए हमें शास्त्रों और संतों की वाणी का अनुसरण करना चाहिए।
जिस देश के युवा फिट और बुद्धिमान होते हैं, वह देश हमेशा प्रगति करता है। देश के युवा को सुबह जल्दी उठना चाहिए। सुबह का समय सबसे पवित्र और फलदायी होता है। यदि हम सुबह जल्दी उठते हैं तो हमें अपने दिन की शुरुआत मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ होकर कर सकते हैं। इससे हमारे दिन भर की ऊर्जा और कार्यक्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
मानव की भाषा हमेशा मीठी और संयमित होनी चाहिए। मीठी भाषा का प्रभाव न केवल हमारे रिश्तों को मजबूत करता है, बल्कि यह हमारे आत्मविश्वास को भी बढ़ाता है। एक व्यक्ति का व्यवहार ही उसके सम्मान और अपमान का कारण बनता है। यदि हम दूसरों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करते हैं, तो हमें भी सम्मान मिलता है।
रामायण को सुनकर और उसमें से जीवन के मूल्य ग्रहण करके हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। रामायण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला और मार्गदर्शन प्रदान करने वाला एक अमूल्य धरोहर है। उसकी शिक्षाएं हमें सच्चाई, धर्म, प्रेम, और त्याग के महत्व को समझने में मदद करती हैं, जो जीवन को संतुलित और खुशहाल बनाते हैं।
मानव को हमेशा भगवान पर अटूट विश्वास रखना चाहिए, क्योंकि भगवान ही वह शक्ति हैं जो उसके सभी कार्यों को सफल बनाते हैं। मनुष्य अपने प्रयासों से कई कार्य करता है, लेकिन अंतिम रूप से उसके जीवन की सफलता ईश्वर की कृपा पर ही निर्भर होती है।
जब इंसान भगवान पर विश्वास रखता है और सच्चे मन से उनकी भक्ति करता है, तो उसकी सभी समस्याओं का समाधान स्वतः हो जाता है। जो लोग ईश्वर में विश्वास नहीं रखते, वे भटक जाते हैं और सांसारिक उलझनों में फंसकर अशांत जीवन जीते हैं।
आजकल मानव अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए एक-दूसरे से संबंध बनाता है, लेकिन जब उसका स्वार्थ पूरा हो जाता है, तो वह अपने संबंधों को त्याग देता है। यह दुनिया स्वार्थ की डोर से बंधी हुई प्रतीत होती है, जहां लोग केवल अपने लाभ के लिए दूसरों से जुड़े रहते हैं। लेकिन जब उनका लाभ समाप्त हो जाता है, तो वे एक-दूसरे से दूर हो जाते हैं।
मनुष्य का असली स्थान संतो के चरणों में होना चाहिए, क्योंकि संत ही उसे सही जीवन जीने का मार्ग दिखाते हैं। संतों की वाणी जीवन का वास्तविक ज्ञान कराती है और हमें यह सिखाती है कि हमें किस प्रकार अपने जीवन को धर्म, सत्य और भक्ति के मार्ग पर चलाना चाहिए।
जो व्यक्ति संतों की संगति करता है, वह जीवन में सच्चे आनंद और मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। इसलिए, हमें संतों के चरणों में बैठकर उनकी वाणी को सुनना और अपने जीवन में उसे अपनाना चाहिए, तभी हमारा जीवन सार्थक होगा।