तवायफ का दर्द – विरासत में दिखा ‘मंजरी’ का मार्मिक मंचन

बालजी दैनिक के लिए अनीता तिवारी की स्पेशल रिपोर्ट –
देहरादून – 29 अक्टूबर , देहरादून की पहचान बन चुका दिवाली वीक की सबसे बड़ी रौनक और हलकी ठंड भरी सुरीली शाम लोग जब विरासत के महफ़िल ए साज और आवाज़ में पहुंचे तो यहाँ एक ऐसी तान छिड़ी जो सीधे श्रोताओं के दिल में उतर गयी। विरासत महफिल में तवायफ की कहानी को लेकर यही सब कुछ कहते हुए बेरहम पुरुषों को आईना दिखाया गया I विरासत के मंच पर शाबू बजरंगी रौनक शर्मा की थी, परवाना थी मंजरी चतुर्वेदी द्वारा विरासत में नवाब जान की कहानी को बयां किया गया, जिसमें 1857 से पहले की कहानी है जब पुरानी दिल्ली में तवायफ गजल, मुजरा एवं नृत्य कर लोगों का मनोरंजन किया करती थीं। तब उन दिनों लोग महिलाओं को सिर्फ एक तवायफ की नजर से देखते थे, जिससे लोगों का मन बहलाना रहता था लेकिन कभी भी उनके द्वारा प्रस्तुत की गई गजलें, मुजरा एवं नृत्य को कला का स्थान नहीं प्राप्त हुआ। वह कहती हैं कला कभी भी स्त्री और पुरुषों के बीच में अंतर नहीं करता l मंजरी चतुर्वेदी कहती है कि कला को कभी भी लिंग के अनुसार विभाजित नहीं करना चाहिए I
वो कहती हैं कि मैं मानती हूं कि हमारा समाज पुरुष प्रधान है, परंतु उन्होंने महिलाओं को कभी भी एक कलाकार के रूप में सामने आने नहीं दिया है। आज के इस दौर में जो भी आप नृत्य कला संगीत मुजरा सुनते और देखते हैं वह सब उन्हें तवायफों द्वारा बचा के रखी गई है। मैं 15 साल से यह प्रयास कर रही हूं कि उन दिनों में प्रस्तुत होने वाले सभी कलाओं को जीवित रखा जाए और हमारे आने वाले भविष्य के युवाओं को यह पता होना चाहिए कि कल को संजोकर रखने में तवायफ का सबसे बड़ा योगदान है। विरासत की महफिल में आज की सांस्कृतिक संध्या के दौरान दी गई इस प्रस्तुति में मंजरी चतुर्वेदी के साथ एकांत कॉल ने प्रस्तुति देकर सभी के दिलों दिमाग पर अपनी अमित छाप छोड़ दी I
सभी के दिलों को छू लेने वाले कलाकार मंजरी चतुर्वेदी की प्रस्तुति आज की विरासत में बेहद लोकप्रिय रही I मंजरी चतुर्वेदी एक विद्वान हैं और उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से पर्यावरण विज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की है। उन्होंने प्रसिद्ध यूपी संगीत नाटक अकादमी के कथक केंद्र में कथक नृत्य की पेशेवर श्रेणी में प्रशिक्षण लिया। उन्होंने शुरुआत में अर्जुन मिश्रा के मार्गदर्शन में लखनऊ घराने के कथक में प्रशिक्षण लिया। उन्होंने प्रोतिमा बेदी के नृत्यग्राम में कलानिधि नारायण के अधीन अभिनय का भी अध्ययन किया। उन्होंने पंजाबी सूफी परंपराओं में बाबा बुल्लेशाह के योगदान का बारीकी से अध्ययन किया। महान सूफी संत मौलाना रूमी और अमीर खुसरो ने भी उन्हें प्रभावित किया और उनके नृत्य में रचनात्मक मोड़ लाया।
उन्होंने दुनिया भर के 22 से ज़्यादा देशों में 300 से ज़्यादा संगीत कार्यक्रमों में बेहद शानदार प्रस्तुति दी है। पिछले दो दशकों में मंजरी जी ने पूरी दुनिया में संगीत कार्यक्रम पेश किए हैं I पिछले दशक में मंजरी चतुर्वेदी ने ग्लोबल फ्यूजन के रूप में कई अंतरराष्ट्रीय कलाकारों के साथ मिलकर काम किया है और उनके साथ प्रस्तुति दी है I कोर्टेसन प्रोजेक्ट मंजरी चतुर्वेदी की एक शानदार पहल है जो वेश्याओं, तवायफ़ों से जुड़े सामाजिक कलंक को दूर करने और उन्हें बेहतरीन कलाकार के रूप में सम्मान और स्थान दिलाने के लिए समर्पित है।
आज ‘वेश्या’ और ‘वेश्या’ शब्दों का परस्पर उपयोग होना असामान्य नहीं है। यह सबसे बड़ी गलती है जो लगातार की जाती रही है। लैंगिक असमानता पर आधारित इतिहास के एक बेहद अनुचित रिकॉर्ड में इन कलाओं को करने वाले पुरुषों को “उस्ताद” (मास्टर) के रूप में सम्मानित किया जाता है, जबकि उसी कला को करने वाली महिलाएँ “नाच लड़कियाँ” (नृत्य करने वाली लड़कियाँ) बन जाती हैं।