कविता

माँ

कितने भी सैलाब आए आसमां डूबता नहीं है
माँ घर पर हो तो तुलसी का पौधा सूखता नहीं है
पर माँ अभी घर नहीं है कुछ दिन बाद आयेंगी
अगर ज्यादा दिन ना आई तो तुलसी सूख जायेगी
माँ और तुलसी के बीच बड़ा गहरा नाता है
जब तक तुलसी को ना सींचे माँ को कुछ नहीं भाता है
तुलसी भी माँ का हाल इस तरह बता देती है
माँ हो उदास तो अपना एक पत्ता गिरा देती है
माँ बीमार हो तो तुलसी भी बीमार पड़ जाती है
वैसे तो हरी है पर बीमार होकर काली नजर आती है
कभी तकलीफ में माँ कुछ दिन कही रुक जाती है
तो तुलसी की डालिया भी एक ओर झुक जाती है
जब माँ बच्चों को साथ लेकर सोती है
तुलसी भी अपने बीज खुद ही बोती है
माँ जब-जब मेरा सर प्यार से सहलाती है
तब-तब तुलसी में नई कोंपले फूट आती है
लगता है दूर रह कर आज माँ के आंसु निकल रहे है
तभी आंगन की तुलसी के कुछ पत्ते गल रहे है
कह दो माँ से मैं हर पल उनका ख्याल करता हूं
वो उदास न हो इसलिए रोज तुलसी की देखभाल करता हूं
दुआ है जल्द मौसम बदलेगा और बरसात आयेगी
तुलसी फिर से लहराएगी और माँ घर लौट आएगी

गोविंदसिंह चौधरी (पिंडवाड़ा)

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