स्वास्थ्य पर्यवेक्षक पुरुष को शासनादेश से अधिक वेतन देने पर जिम्मेदारों पर अब तक नहीं हुई कार्रवाई
सीतापुर राकेश पाण्डेय। राज्य के विभिन्न स्वास्थ्य विभागों में कार्यरत स्वास्थ्य पर्यवेक्षक (पुरुष) को शासनादेश में निर्धारित वेतनमान से अधिक वेतन दिए जाने के मामले में लेखाकार लिपिक और आहरण वितरण अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। शासनादेश का स्पष्ट उल्लंघन होने के बावजूद अब तक सम्बन्धित अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है, जिससे शासन की कार्य प्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
मामले की पृष्ठभूमि
स्वास्थ्य विभाग में शासना देश के तहत विभिन्न पदों के लिए वेतनमान निर्धारित किए गए हैं।बावजूद इसके, कुछ मामलों में स्वास्थ्य पर्यवेक्षक पुरुष को तय वेतनमान से अधिक वेतन का भुगतान किया गया। यह अनियमितता मुख्य रूप से लेखाकार लिपिक और आहरण वितरण अधिकारियों की अनदेखी या मिलीभगत के कारण सम्भव हुई है।
कार्रवाई का अभाव
इस वित्तीय अनियमितता के उजागर होने के बाद भी, जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ किसी प्रकार की जांच या दंडात्मक कार्रवाई शुरू नहीं की गई है। इससे यह प्रतीत होता है कि मामले को दबाने की कोशिश की जा रही है या फिर इसे नजरअंदाज किया जा रहा है।
शासन की जवाबदेही पर सवाल
इस मामले में अब तक कार्रवाई न होने से सरकार की जवाबदेही और पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं। यह न केवल वित्तीय अनुशासन का उल्लंघन है, बल्कि शासनादेश का भी सीधा अपमान है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
वित्तीय मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में तुरन्त जांच कर दोषियों पर कार्रवाई होनी चाहिए। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं होती, तो यह अन्य विभागों में भी अनुशासनहीनता को प्रोत्साहित करेगा।
आगे की कार्रवाई की मांग
सम्बन्धित विभागों से इस मुद्दे पर तत्काल जांच शुरू करने और दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग की जा रही है। साथ ही यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
निष्कर्ष:
शासनादेश का पालन सुनिश्चित करना और वित्तीय अनुशासन बनाए रखना शासन की प्राथमिकता होनी चाहिए। इस मामले में देरी से सरकार की छवि और प्रशासनिक पारदर्शिता प्रभावित हो रही है।
अब देखना होगा कि इस अनियमितता के खिलाफ शासन कब और क्या कार्रवाई करता है।