अयोध्याउत्तर प्रदेश

असत्य पर सत्य की जीत ही कंस बध् का ज्ञान देता है – देवेन्द्र प्रसन्नाचार्य

बलराम मौर्य/ बालजी दैनिक
अयोध्या धाम l सात दिवसीय संगीतमई श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन सहदतागंज में प्रसिद्ध कथा वाचक श्री देवेन्द्र प्रसन्नाचार्य जी महाराज के मुखारविंदु आज के प्रसंग कथा में मथुरा गमन, कंस वध, श्रीकृष्ण रुक्मिणी विवाह (झांकी) में भगवान श्री कृष्ण की जय जय कार से श्रोता भाव विभोर हो गए और जय कारा लगाने लगे l देवेन्द्र प्रसन्नाचार्य जी महाराज ने कहा कि पौराणिक व धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कंस को ऐसा श्राप मिला था कि, हर जन्म में उसकी मृत्यु भगवान विष्णु के हाथों की होगी और उन्होंने अपने पिता का गुणगान करने से मना कर दिया. तब कालनेमि के पिता और उन सभी के दादा हिरण्याक्ष ने अपने पोतों को श्राप दिया कि, सभी पातालवासी हो जाएं. लेकिन उस समय उन सभी पर इस श्राप का कोई असर नहीं हुआ l कंस ने जब एक-एक कर अपने ही पुत्रों को मार डाला कंस की एक बहन थी, जिसका नाम देवकी था l वह देवकी को बहुत प्रेम करता था l देवकी के विवाह के बाद वह उसे और उसके पति को ससुराल लेकर जा रहा था, तभी भविष्यवाणी हुई कि, देवकी का पुत्र ही उसकी मृत्यु करेगा l यह भविष्यवाणी सुनते ही कंस ने देवकी और उसके पति वासुदेव को कैद कर जेल में डाल दिया. जेल में ही देवकी ने 6 पुत्रों को जन्म दिया. एक-एक कर कंस ने सभी को मार डाला l कथा के अनुसार, देवकी की कोख से जन्म लेने वाले ये 6 पुत्र पूर्व जन्म में कंस यानी कालनेमि के ही पुत्र थे, जिसकी हत्या कंस ने कर डाली l क्योंकि कालनेमि के पुत्रों पर श्राप था कि, उनकी मृत्यु कालनेमि के ही हाथों होगी l इस तरह से दुष्ट कंस का अत्याचार और पाप बढ़ने लगा. तब उसके अंत के लिए भगवान विष्णु के श्रीकृष्ण के रूप में धरती पर जन्म लिया. देवकी ने कृष्ण को जन्म दिया और वासुदेव उन्हें मथुरा छोड़ आए. कृष्ण का लालन-पालन मां यशोदा और नंद बाबा ने किया. कंस को जब पता चला कि, देवकी का एक पुत्र जीवित है तो, उसने कृष्ण को मारने के कई हथकंडे अपनाएं लेकिन सब निरस्त हो गए. इसके बाद कंस ने युद्ध के लिए कृष्ण को मथुरा बुलाया. कंस की चुनौती स्वीकार कर कृष्ण भी बलराम के साथ मथुरा पहुंच गए l मथुरा पहुंचकर पहले तो कृष्ण और बलराम ने कंस के दो सबसे शक्तिशाली पहलवान मुष्टिका और चाणूर को हराया. फिर कृष्ण ने कंस के ही तलवार से उसका सिर कलम कर दिया. कंस का वध कर श्रीकृष्ण ने कारागार से दोषियों और अपने प्रियजनों को मुक्त कराया और उग्रसेन को उसकी गद्दी भी वापस दिलाई. श्रीकृष्ण के रूप में भगवान विष्णु द्वारा कंस का वध हुआ l अंत में रुकमणि विवाह की झाँकी निकाली गई lमुख्य यजमान पप्पू मोदनवाल और उनके परिवार के सत्यम सहित सम्पूर्ण परिवार के लोग कथा श्रवण कर धन्य हो रहे है l कथा में सैकड़ो की संख्या में लोग मौजूद रहे l

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