विचार

पलटासन योग करते नेता ओर राजनीति

– आत्‍माराम यादव पीव

  हर मनुष्य का अपना-अपना व्यक्तित्व है और वही उसकी पहचान भी है। करोड़ों की भीड़ में हरेक मनुष्य अपने निराले व्यक्तित्व के कारण पहचान लिया जाता है, यही उसकी विशेषता भी है। जैसे प्रकृति का नियम है कि वह पूरे जगत में एक भी वृक्ष,पौधा,बेल आदि सभी प्रकार की वनस्पति हो या जीव जंतु अथवा प्राणी, सबकी आकृति में भिन्नता रखता है वहीं मनुष्‍यों में भी जन्मजात भेद, आकृति तक सीमित न रख उसके स्वभाव, संस्कार और प्रवृत्तियों में भी असमानता रखता है। आखिर परमात्मा के पास इन सभी के अलग अलग अनुपम सौंदर्य के सांचे कहां से आए, अवश्य ही उसकी इस अदभुत सृष्टि को अभिव्यक्त कर पाना असंभव है। जहां एक ओर भारतीय राजनीति में दलीय निष्ठा के प्रति समर्पित राजनेता कब पलटासन लगा अपनी वर्षों पूर्व की प्रतिष्ठा को धूल चखा कर राजनीति की दिशा ओर दशा बदल कर सरकार बना ले या सरकार गिरा दे, यह एक चलन सा हो गया है। जबकि नेता की अपेक्षा एक आम व्यक्ति या इंसान अपने घरों में पालतू पशुओं की वांछनीयता से मुक्ति हेतु उन्हें खूंटी से बांधकर रखता है ठीक वैसे ही पर वह भूल जाता है कि वह भी खुद एक खूंटी से बंधा है, इस प्रकार समूची पृथ्वी पर हरेक की अपनी अपनी खूंटी है जिससे वे बॅधे है। पलटासन के माहिर नेता के बलबूते पर बनने वाली सरकार में राजनीति भी पलटासन लगाने से नहीं चुकती है।

यह दुनिया बड़ी विचित्र है, सृष्टि के आरम्भ से अंत तक जीव अपने कर्मो को भोग रहा है और उन्होंने ईश्वर को वशीभूत कर लिया है वह जगत को भोग रहा है अर्थात दुनिया भर की सारी विलासिता के संसाधन उसके अधीन है। दूसरे शब्दों में अगर कहा जाए तो जैसे पालतू जानवरों को खूंटे से बांधकर व्यक्ति जानवरों की स्वतंत्रता छीनकर उन्हें अपने अधीन रखता है उसी प्रकार परमात्मा ने भी इस जगत के सारे मनुष्‍यों, देवताओं, भूत-प्रेतों सभी को एक-एक खूंटी से बांध रखा है , यह अलग बात है कि यह खूंटी हमें या आपको दिखाई नहीं देती है किन्तु यह खूंटी मन की तरह बदलती रहती है। शरीर में यह मजबूत खूंटी आत्मा है जिसमें बच्‍चे से लेकर बूढ़े तक, चपरासी से लेकर कलेक्टर तक, कमिश्नर से लेकर मुख्य सचिव तक, पंच-सरपंच से लेकर मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राज्यपाल-राष्ट्रपति तक हर आम शहरी से लेकर हर विशेष वर्ग समुदाय के छोटे से बडे व्‍यक्ति तक यह अदृश्‍य पद की, कुर्सी की खूंटी गडी हुई है और खूंटी से बंधा व्‍यक्ति अपनी खूंटी की ताकत पर फूला नहीं समाता है।

हमारा समूचा सामाजिक ढाँचा अप्रत्‍यक्ष रूप से खूंटी से बंधा है, जिसके पास प्रत्‍यक्ष खूंटी नहीं है वह तत्काल खूंटी तैयार करने तथा बॅधने में जी जान से जुट जाता है। चौकीदार से लेकर प्रधानमंत्री राष्ट्रपति तक का पद एक खूंटी नहीं तो क्या है जिससे बॅधने के लिए क्‍या-क्‍या और किस प्रकार के कितने हथकंडे अपनाए जाते है, वे दिखाई देते है। चाय-पकौड़े,सब्जी बेचने वाले से देश बेचने वाले तक, सभी छोटे-बडे पद एक खूंटी भर तो है जिससे बंधे व्यक्ति की योग्यता आदि की पहचान हर आम नागरिक कर सकता है, कि ये फॅला साहब की खूंटी है, जैसे मैं लिख रहा हॅू तो पाठक समझ सकते है कि मैं पत्रकार या लेखक की खूंटी से बंधा हॅू और वे पाठक की खूंटी से बॅधे है। पत्रकार का काम है कि वह विधायिका के चार अन्य स्तम्भों की छोटी से लेकर बडी खूटी से लेकर सबसे निचले पायदान पर पंच-सरपंच तक व प्रशासनिक हल्‍के में सबसे बड़ी खूटी मुख्य सचिव से लेकर निचली खूंटी चौकीदार तक अपनी जिम्‍मेदारी का निर्वहन करू, जिसे भ्रष्‍टाचार की खूंटी से जुडकर गुमराह भी किया जा सकता है अथवा भ्रष्‍टाचार की खूंटी को बेनकाब कर अपने ईमान की खूंटी पर कायम रहा जा सकता है।

    चुनाव आते ही हर नेता अपनी खूंटी अपने हाथ में लिए पलटासन लगा रहे है। बात स्पष्ट है कि इनका चरित्र वेश्याओं की तरह हो गया है, ये पाटियॉ बदलकर अपना चरित्र चित्रण कर अपनी ओकात जनता के समक्ष रखकर गर्व से दागी चेहरों लिए फूले नहीं समाते है। राजनीति में नेताओं का चरित्र सबसे घटिया हो गया है, वे अपने चरित्र को परखना चाहे तो आश्चर्यचकित होंगे कि उनके खून में पार्टिया बदलने के कारण इतने विषैले तत्वों का मिश्रण हो चुका है कि इसकी जॉच किसी भी प्रयोगशाला की परीक्षण-नली में नहीं किया जा सकता। उसके विश्लेयण का प्रयत्न सदियों से हो रहा है। हजारों वर्ष पहले हमारे विचारकों ने उसका विश्लेषण किया था। आज के मनोवैज्ञानिक भी उसी में लगे हुए हैं। फिर भी यह नहीं कह सकते कि मनुष्य-चरित्र का कोई भी संतोपजनक विश्लेपण हो सका है इस दलबदलू राजनीति में अवसरवादिता ने पातंजलि योग से निरोग रहने की विदधा को पीछे छोड़ दिया है ओर नेताओं ने सारी अनैतिकता को अपनाकर पलटासन को गले लगा सरकारों को अपनी उंगली पर नचाना शुरू कर देते है ओर फिर सब कुछ उल्टा पुलटा का चलन इस पलटासन का फलित होता है  ।

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