कविता
सहारे गए
पता नहीं क्यों हम नकारे गए ।
लुटा के सब हम मारे गए।
सहारा दिया अपना समझ।
तभी तो अपने सहारे गए।
वक्त की दौड़ में पिछड़ गए।
हाथों से छूट किनारे गए।
हमने चाहा जी भर सभी को।
हमीं सब ओर से नकारे गए।
बहला कर हमें,हमारे हक।
सामने हमारे डकारे गए।
सुदेश दीक्षित
बैजनाथ कांगड़ा