संन्यासी विद्रोह से जन्मा था सबसे बड़ा Juna Akhara

Juna Akhara

कुम्भ नगर से प्रियांशु द्विवेदी की रिपोर्ट – प्रयागराज , 26 दिसंबर: Juna Akhara: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 12 साल के बाद महाकुंभ का आयोजन हो रहा है. इस महापर्व को लेकर पूरे प्रदेश को सजाया जा रहा है. देश-विदेश से लाखों में संख्या में लोग महाकुंभ मेले में शामिल होने के लिए आते हैं. कुंभ मेले का आयोजन 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 के बीच होगा. जानकारी के अनुसार, महाकुंभ मेले में श्री पंचदशनाम प्राचीन जूना अखाड़ा होगा, जो शैव तपस्वी परंपरा के सात अखाड़ों में से सबसे बड़ा और प्रतिष्ठित है. इनकी हिन्दु समुदाय और धार्मिक कार्यक्रम समेत अनुष्ठानों से जुड़े कार्यों में अहम भूमिका होती है. आज हम आपको जूना अखाड़ा के बारे में बताएंगे कि इसकी स्थापना कैसे हुई और इनका प्राचीन इतिहास क्या है.

Juna Akhara

क्या है जूना अखाड़ा(Juna Akhara)?

जूना अखाड़ा(Juna Akhara) के ज्यादातर सदस्य नागा साधु होते हैं. अखाड़े की स्थापना उत्तराखंड में आदि शंकराचार्या ने की थी. इसे भैरव अखाड़े के नाम से भी जाना जाता है, जिसके मुख्य देवता भगवान दत्तात्रेय हैं. इसका मुख्य स्थान (मुख्यालय) वाराणसी में है और अभी इसका नेतृत्व प्रेम गिरी महाराज करते हैं. वहीं महंत हरि गिरी महाराज इसके संरक्षक हैं. अखाड़े में सबसे बड़ा पद आचार्य महामंडलेश्वर का है, जिस पर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज बैठते हैं. जूना अखाड़ा का इतिहास जानकारी के अनुसार जूना का अर्थ प्राचीन है, जिसे अखाड़े की विरासत के रूप में देखा जाता है.

Juna Akhara

कहा जाता है कि वर्ष 1780 के संन्यासी विद्रोह के दौरान जूना अखाड़ा(Juna Akhara) अस्तित्व में आया. तब देश में 500 से ज्यादा रियासतें थीं, लेकिन हिंदुओं में एकता नहीं थी. हिंदु आपस में ही एक-दूसरे से बैर रखते थे और आस्था में कमी देखने को मिली. जिसकी वजह से विदेशी शासन का अत्याचार बढ़ता चला गया. संन्यासियों ने अपने धर्म और मातृभूमि की रक्षा के लिए समूह बनाए और गुरिल्ला युद्ध में शामिल हुए. इस युद्ध में शास्त्र और शास्त्र दोनों शामिल थे. संन्यासी विद्रोह नाम का यह आंदोलन संन्यासियों के योद्धा-संतों के रूप में उभरने में महत्वपूर्ण था.

आजादी के लिए पहला संघर्ष किंवदंतियों के अनुसार, प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान मुगल सम्राट जहांगीर के आगमन की खबर साधुओं तक पहुंची. बदले के लिए एक तपस्वी ने जहांगीर को खंजर से घायल कर दिया. इन घटनाओं ने देश की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के रक्षक के रूप में अखाड़े की प्रतिष्ठा स्थापित की. कुछ इतिहासकार संन्यासी विद्रोह को देश की आजादी के लिए पहला संघर्ष मानते हैं. बता दें कि जूना अखाड़ा को दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक संगठन माना जाता है. इसके लाखों सदस्य हैं. अखाड़े में नागा संन्यासी, महामंडलेश्वर और महंत सहित अनेक पद हैं, जिनमें से प्रत्येक की भूमिका विशिष्ट आध्यात्मिक और प्रशासनिक जिम्मेदारियों का प्रतिनिधित्व करती है.

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