कविता
बदल गया है गांव

शिवकुमार पाण्डेय गुरूजी/ बीन्यूज हिंदी दैनिक
तरबगंज.
बदल गया है गांव हमारा, पहले जैसी बात कहां है
कउड़े पर सुनते थे क़िस्से,वह सर्दी की रात कहां है
अबाबील घर से ग़ायब है,गौरैया भी रूठ गई
आंगन में बरसे मछली, अब पहले सी बरसात कहां है
गीत,गवनई, गारी,सोहर,आल्हा,विरहा भूल चुके
डोली में रोती थी दुल्हनियां,अब वैसी बारात कहां है!
भूजा-भेली और बताशा,खाझा, घर-घर बंटता था
लाख बंटें अब लड्डू, पेड़े, मन भाती सौग़ात कहां है।
दुख में सबके आंसू पोछें,सबकी वह औक़ात कहां है।
ख़त लिखने-पढ़ने वाले भी सुख-दुख में शामिल होते थे
मोबाइल से बात हो रही,अब साझा हर बात कहां है!