Voting के दिन मॉल और ऑनलाइन शॉपिंग पर भड़के व्यापारी
ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर भड़के व्यापारी संगठन ने माँगा सरकार से जवाब
देहरादून 25 जनवरी: Voting: डिस्ट्रीब्यूटर ऑफ उत्तराखंड (संबंध डिस्ट्रीब्यूटर्स वेलफेयर एसोसिएशन रजि०),जनरल मर्चेंट्स एसोसिएशन, युवा व्यापारी वेलफेयर एसोसिएशन, प्रदेश उद्योग व्यापार मंडल ने कहा कि उत्तराखंड सरकार द्वारा 23/01/25 को नगर निगम निकाय चुनाव(Voting) के संदर्भ में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया था। इस अवकाश में शासकीय, गैर शासकीय,सभी प्रकार की शिक्षण संस्थाएं और सभी प्रकार के व्यापारिक प्रतिष्ठान एवम् उनमें व्यापारिक गतिविधियां पूर्णतः बंद थी। परंतु बिलंकिट एवं अन्य ई-कॉमर्स कंपनी द्वारा अपनी दुकानदारी और अपना व्यापार भरपूर तरीके से चलाया गया इसके साथ ही शहर के तमाम बड़े-बड़े मॉल एवं रिजॉर्ट्स पूर्णतया खुले रहे जिससे की वोटिंग(Voting) भी प्रभावित हुई है, सुबह से लेकर के शाम तक व्यापार बिना किसी भय एवं बाधा के लगातार व्यापार किया गया। जो कि देहरादून के जितने भी व्यापारी थे उनके आर्थिक हितों के ऊपर बहुत ही बड़ा कुठाराघात है, आज प्राप्त जानकारी के अनुसार ब्लिंकीट और ई कॉमर्स ने अपने औसत व्यापार से अनुमानित चार गुना व्यापार किया, जो कि अंततः कहीं ना कहीं देहरादून के अनुशासित रिटेलर, खुदरा व्यापारी और उनके आर्थिक स्थिति को प्रभावित करेगा।
हम सरकार से पूछना चाहते हैं कि यह जो कारोबार हुआ यह सरकार की मर्जी से हुआ या सरकार की मर्जी के विपरीत हुआ। अगर मर्जी से हुआ तो क्या यह आगे भी जारी रहेगा और मर्जी के विपरीत हुआ तो सरकार क्या दंडात्मक कार्यवाही कर रही है।सरकार भारत के 6 करोड़ रिटेलर को और प्रत्येक रिटेलर के ऊपर अगर पांच आदमी का परिवार और एक कर्मचारी को हम लगाये तो यह गणना लगभग 40 करोड़ की जनसंख्या बैठती है। क्या भारत सरकार बिलंकिट जैसी कंपनी के माध्यम से या इ-कॉमर्स कंपनियों के माध्यम से इन 40 करोड़ भारतीयों की विशाल जनसंख्या को नजरअंदाज कर रही है?
अगर भारत सरकार चाहती है कि यह खुदरा व्यापारी बचा रहे, और इनका व्यापार एवम परिवार भुखमरी से बचा रहे, तो कहीं ना कहीं भारत सरकार को आगे बढ़कर अपने टैक्स के लालच को त्यागकर इन इ-कॉमर्स कंपनियों पर लगाम लगानी पड़ेगी।इनके अनाप शनाप मार्जिनों , गलत परम्पराओं पर लगाम लगानी पड़ेगी । ई कॉमर्स कंपनियां विभिन्न प्रकार के गलत प्रलोभन देकर के भारतीय उपभोक्ता को अपने मकड़ जाल के अंदर कस रहे हैं। अगर ई कॉमर्स कंपनी का ₹200 का बिल बनता है तो कंपनी उसके ऊपर 125 रुपए का डिस्काउंट दे देती हैं। यह इतना कुछ ग्राहक को दे देते हैं कि जो रिटेलर और होलसेलर की खरीद मूल्य से भी विस्मयकारी रूप से बहुत नीचे होता है। सरकार को अपनी मंशा साफ करनी पड़ेगी कि वह खुदरा व्यापारियों के पक्ष में है या इन बिलंकिट,और ई-कॉमर्स कंपनियों के पक्ष में रहकर के खुदरा व्यापारियों के हितों पर चोट पहुंचा कर व्यापार करवाना चाहती है।