जीवन में अंग उपांगों की तरह आवश्यक है घोष। गंगा सिंह आरएसएस में घोष का अपना अलग महत्व है। प्रवीण
अनिल कुमार द्विवेदी
बी न्यूज दैनिक
गोंडा – जीवन संपूर्णता लाने के जिस प्रकार सभी अंग उपांगों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में घोष का अपना अलग महत्व है। उक्त विचार वुधवार को मंडल मुख्यालय के सरस्वती विद्या मंदिर माधव पुरम बड़गांव में आयोजित आरएसएस के तीन दिवसीय घोष वर्ग के समापन सत्र में प्रांत संपर्क प्रमुख अवध गंगा सिंह ने ब्यक्त किए। उन्होंने कहा कि संघ में पहली बार घोष को 1926 में शामिल किया गया। तब से घोष संघ का एक अंग बन गया। 1982 के एशियाड खेलों में पहली बार घोष की धुन बजाई गई। 1962 की लड़ाई के बाद संघ के स्वयंसेवक लाल किले के सामने परेड में अपनी घोष के साथ सामिल हुए। जिला कार्यवाह अश्वनी ने बताया कि घोष वर्ग में कुछ 60 शिक्षार्थियों ने प्रतिभाग किया। शिक्षार्थियों को घोष के प्रशिक्षण में शंख, बंशी, अनेक व पड़ाव जैसे अनेक बाद्य यंत्रों का प्रशिक्षण दिया गया। वर्ग में शैलेंद्र, अनिल, रवि, जीतेंगे सहित अन्य स्वयंसेवक शामिल रहे।
तन मन धन से राष्ट्र की सेवा करें स्वयंसेवक। प्रवीण
बुधवार को ही विकास खंड बेलसर के अवध शरण तिवारी इंटर कालेज के परिसर में आरएसएस के विभाग (गोंडा, बलरामपुर व नंदिनी नगर सांगठनिक जिला) स्तरीय सात दिवसीय प्राथमिक शिक्षा वर्ग का समापन हो गया। बैठक के शैक्षिक सत्र में विषय रखते हुए विभाग प्रचारक प्रवीण ने कहा कि स्वयं सेवकों को तन मन व धन से भारत माता की सेवा करनी चाहिए। हमारे भीतर सभी क्षेत्रों में राष्ट्र प्रथम हो ऐसी भावना होनी ही चाहिए। वर्ग कार्यवाह शैलेंद्र ने बताया कि साप्ताहिक वर्ग में शिक्षार्थियों को शाखा में दंड, नियुद्ध, समता, योगासन, पद विन्यास सहित अन्य गतिविधियों के साथ शैक्षिक गुणवत्ता का संवर्धन किया गया। वर्ग में शिक्षक, अधिवक्ता, किसान व विद्यार्थी सहित अन्य स्वयंसेवक शामिल रहे।