उत्तर प्रदेश

रुपयों से किसे प्यार नहीं हैं !

आत्माराम यादव पीव 
परिवहन विभाग के एक अदने से कांस्टेविल सौरभ शर्मा के पास 2 हजार करोड़ का हिसाब मिला यानि उसने अपने विभाग से इतने रुपए कमाए थे। शेष अरबों रुपए के सोना चाँदी, चल अचल संपत्ति के उसके साथी दावेदार बताए जा रहे है, पर उनके हाथ पैर फूले है ओर भूल से भी कोई उनका नाम सौरभ से जोड़ता है तो वे झट डायरी में मेरा नाम नहीं होगा मीडिया को सफाई देने कूद पड़ते है। सोचिए परिवहन विभाग का यह आलम है तो क्या आबकारी विभाग, खनिज विभाग, माइनिंग विभाग, कृषि विभाग, सहकारिता विभाग सहित अन्य दूध देने वाले विभागों में सौरभ शर्मा जैसे कर्मचारी देश विदेश का चक्कर लगाकर उन देशों में जमीन दुकाने नहीं खरीद कर अपने परिजनों को व्यवस्थित कर चुके होंगे जैसे सौरभ शर्मा करता रहा है। कानून का कौन क्या बिगड़ेगा, जो कानूनी कार्यवाही के लिए अधिकृत है अगर  वे कार्यवाही के दरम्यान जब्त का आधा बताकर, शेष इधर उधर कर दे तो उनका कौन क्या उखाड़ लेगा? आखिर वे लक्ष्मी का अनादर क्यो करे? हाथ आए रुपए अगल बगल में रखा जाये तो इनका  क्या दोष? कानून के रक्षक के लिए कानून का सम्मान जरूरी है, सम्मान में जब्ती कर  प्रकरण तो बना दिया, फिर जो शेष हुआ वह अब तक कानूनन परिपाटी में मिलबाटना हुआ तो तुम्हारे दिल पर साँप क्यों लोटता है, जो इसे गैरकानूनी बताकर खामोखा कानून से बैर लेने पर तुले हुए हो? मसलन देखा जाये तो सभी विभागों में ग्राम पंचायत से लेकर तहसील, जिला, संभाग, प्रदेश ओर देश में इन विभाग के कर्मचारी अपना नेटवर्क सौरभ शर्मा की तरह फैलाकर अदृश्य हुये है तो यह सबको पता है ओर इसी कारण इन लोगों तक कभी कोई हाथ डालने की जुर्रत नहीं करता,यानि शासकीय सेवक हो या गैर शासकीय अथवा जनता का चुना या रिजेक्ट जनसेवक सबकी मिलीभगत से सब देश की संपत्ति को अपने बाप की संपत्ति समझ खाओ ओर खाने दो की नीति पर मिल बाँटकर काम करते हुये खा रहे है ओर संत की तरह नारा देते है की जियो ओर जीने दो, आखिरकार सौरभ शर्मा जैसे लोग जी रहे है ओर ये कानूनन उन्हे जीने दे रहे है, आम नागरिक का जीना भी कोई जीना है, वह तो मुर्दे के तरह हो गया है, भला हो सोसलमीडिया का जिसके कारण वह जिंदा होने का सबूत देते रहता है।
देश के प्रमुख स्तम्भ विधायिका, कार्यपालिका,न्यायपालिका को संचालित करने वाले बड़े से बड़े अधिकारी ओर छोटे से छोटा कर्मचारी सौरभ शर्मा की तरह रुपए के रूप में पर्याप्त वेतन पाकर भी ओर रुपए की चाह कर कमाता रहा ओर उसे पता भी नहीं चला की उसके पास कितना पैसा आ गया है, यानि वह रुपए से प्यार करता रहा ओर रुपए को ही अपना दीन ईमान बना लिया। सौरभ शर्मा जैसे सभी लोग चाहे वह मोटू-पतलू, छोटू-लंबू, गोरा-काला, स्त्री-पुरुष या ताली पीटने वाली कौम से हो अथवा पत्रकारिता में समाचारों की पतंग को ढील देकर आकाश में पहुचा सददी से काटने वाले के रूप में हो, सभी का मकसद अनिल अंबानी बनने का है। अनिल अंबानी यानि इतना रुपया पास हो की दुनिया को अपनी मुट्ठी में भर ले, उस मुट्ठी से भी ज्यादा चंद्रमा या मंगल गृह पर जाकर बस जाये ओर प्लाट काटकर उस गृह के मालिक बन जाए, ओर यह सब रुपयों के बिना संभव नहीं, इसलिए सभी बुशुमार दौलत कमाना चाहते है ताकि दुनिया में नंबर वन के रईस बन जाये। विधायिका, कार्यपालिका ओर न्यायपालिका के नौकरीपेशा लोगों को पता है उनके यहा कितने सौरभ शर्मा देश को, विभाग को ओर सरकारी योजनाओं को पलीता लगा रहे है पर वे खामोश है, यही खामोशी सौरभ शर्मा जैसों को प्रेरित करती है कि वे अपनी काली कमाई से जरूरत पड़ने पर एक दो देश खरीदने कि औकात रखते है।
सबको पता है जन्म से मृत्यु तक हर खुशी ओर गम के मौके पर पल-पल रुपया सभी का संगी साथी होता है। दुनिया का कोई भी देश हो, हर देश के लोग रुपयों अर्थात वहाँ की प्रचलित मुद्रा की इस उपयोगिता अर्थात साथ निभाने को जानते समझते हुये रुपयों से बेइन्तहा प्यार करते है। हर घर परिवार में, भाई बहनों, पति पत्नी, माता पिता या कोई भी सगा संबंधी हो इन सबके बीच रुपया सभी से बढ़कर होता है,या समझिए रुपया न बोलते हुये भी सबका माईबाप होता है। रुपए के सामने कोई उंच नीच नहीं सभी बराबर होते है किन्तु जिसके पास रुपयों का अम्बार लगा हो या कहिए टकसाल हो जो अनगिनत रुपए प्रतिदिन कमाकर तिजोरी भरने, लाकर भरने, बैंक खातों के हवाले करने में ही जिनकी ज़िंदगी खप जाती है, वह छोटा बड़ा देखता है,उंच नीच देखता है ओर उन्हे हीन भावना से देखकर खुद पर गर्व करता है। इन सेठो-अमीरों के घरेलू नौकर होते है, रामू काका,धनिया काकी,आदि वे सभी रुपयों की चमक दमक से वंचित रहकर इनके रहमो करम पर जीवन गुजार देते है। कभी कभार इनके नौकरों के सामने ईमानदारी की बजाय बीमारी या बहन बेटी की शादी के लिए रुपया महत्वपूर्ण हो जाये तो वे रुपयों के प्यार या कहिए जरूरत के लिए अपराध का रास्ता अपना लेता है। रुपए के प्रेम में पड़कर दीवानगी का नशा सभी पर छाया है, इसीलिए सभी जाति,सभी धर्म सभी भाषा के छोटे बड़े सभी लोगो को रुपए से असीमित प्यार है ओर वे दिन रात रुपए कमाने या जोड़ने में लगे है। माना रुपया सबकी जरूरत है किन्तु रुपया सबकुछ नहीं है।
जनता की सेवा में रुपया बहुत है। कोई भी सरकारी नौकरी हो, पंचायत या जिला संभाग का किसी भी विभाग का प्रमुख हो सबको इतना रुपया वेतन में मिल जाता है जिससे बड़े आराम से उसका ओर उसके परिवार का जीवन भर का गुजर बसर हो जाए किन्तु विभागीय योजनाओं ओर कार्यक्रम का आवंटन उसे बपौती नजर आता है ओर उसे देख उसकी लार टपकने लगती है, कानों में रुपए की खन-खनाहट में बेचैन हुआ वह कागजों में विकास दिखाकर रुपयों की पोटरी की पोटरी हजम कर जाता है। कार्यपालिका, न्यायपालिका के छोटे से लेकर बड़े से बड़े पद पर बैठे कर्मचारी ओर अधिकारी वेतन के रूपये से चिरपिरे व चटपटे मसालेदार कुरकुरे में खर्च बता देते है ताकि नगद नारायण के रूप में करकरे रुपयों की गडडिया उनकी हथेली पर चलने वाली खुजली को दूर करती रहे। जनसेवा के लिए चुने गए सांसद, विधायक, मंत्री, पार्षद, पंच सरपंच या किसी निकाय निगम का अध्यक्ष हो, इन सबकी रुपए से गहरी यारी होती है। ये रुपए के लिए कुछ भी कर सकते है, जो किसी ने सोचा न हो, जो विश्वासयोग्य हो , वह जनता का विश्वास भी बड़े इतमीनान से तोड़कर रुपए के ढेर पर खड़े होते है। असल ये खुद को हिन्दुस्तानी समझकर देश सेवा की ढींगे भरते है किन्तु  इन सभी का कर्म गुलाम देश के गोरे चिट्टे अंग्रेजों की ही तरह अपने देशवासियों को दास बनाए रखने का है।
देशवासियों को दास बनाने के लिए खूबसूरत से जंजीरों से इन लोगों ने जनता को बांधे रखा है। बच्चा पैदा हो तो इनके क्लीनिक में डिलेवरी हो ओर ये लाख दो लाख न्योछावर ले बच्चे ओर माँ की डिलेवरी दे। बच्चा पढ़े तो इनके स्कूल में, डिग्री ले तो इनकी कालेज में ओर दोनों की फीस इतनी की घर बार, दुकान, खेत खलियान बिक जाये, जिनके पास व्यवस्था न हो वो कर्ज में डूब जाये। सब कुछ लुटने पिटने के बाद जब आदमी बीमार हो जाए, हाथ पैर ओर शरीर को कोई रोग घेर ले तो भी ये रुपया कमाने से बाज नहीं आए ओर मर जाने के बाद भी लाश तभी मिले जब इलाज का पैसा चुका दिये जाए। देशवासियों को इतनी खूबसूरत सेवाए देने वाले हमारे जनप्रतिनिधि ओर अधिकारी सोने की चम्मच से च्वनप्राश खाकर खुद के शरीर की इमिन्यूटी का ख्याल रखते हुये इधर- उधर से ताबड़तोड़ एकत्र किए रुपए के पहाड़ों के बीच अपनी अपनी टकसालों में गिनती करने वाली नोट मशीन से रुपयों की गडडिया गिनने में व्यस्त है।
संसार में क्षतिपूत्ति का एक नियम है ओर क्षति करने का जिम्मा समाजसेवी अधिकारियों ओर नेताओं के मजबूत कंधों पर है, शहर में खुलेआम गली गली में शराब बिक रही है,विधायक चिट्ठी लिखकर जिम्मेदारों को नींद से जगाते है, उसी दिन से अधिकारी जाग जाता है ओर विधायक को सबक सिखाने के लिए शराब कंपनियों से हाथ मिला शहर के घरघर शराबसेवा कि सुगम पहुँच करके रोजाना बोरो में रुपया छापने का काम कर विधायक जी को चिड़ाता है। जिले में एक भी मिट्टी की खदान नहीं है ओर न ही किसी ने मिट्टी खोदने की अनुमति ली है पर हजारों डंफर अवैध मिट्टी रोज इन जिम्मेदार अधिकारियों के नाक नीचे शहर मे धड़ल्ले से सड़कों के किनारे खाइयों को भरने का काम हो रहा है, खदानों से सरेआम चोबीसों घंटे रेत की ढुलाई की जाकर नदियों की कोख को उजाड़ा जा रहा है। ये सभी इन विभागों के सौरभ शर्मा है जो रुपयों की गडडिया जोड़ने में लगे क्षति ही क्षति करने में लगे है किन्तु पूर्ति करने अथवा रिक्त स्थान भरवाने का काम ये ही लोग कर रहे है जो क्षति करने मैं सदैव प्रथम रहे है।

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